अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 49/ मन्त्र 6
सूक्त - गोपथः, भरद्वाजः
देवता - रात्रिः
छन्दः - आस्तारपङ्क्तिः
सूक्तम् - रात्रि सूक्त
स्तोम॑स्य नो विभावरि॒ रात्रि॒ राजे॑व जोषसे। असा॑म॒ सर्व॑वीरा॒ भवा॑म॒ सर्व॑वेदसो व्यु॒च्छन्ती॒रनू॒षसः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठस्तोम॑स्य। नः॒। वि॒भा॒व॒रि॒। रात्रि॑। राजा॑ऽइव। जो॒ष॒से॒। असा॑म। सर्व॑ऽवीराः। भवा॑म। सर्व॑ऽवेदसः। वि॒ऽउ॒च्छन्तीः॑। अनु। उषसः ॥४९.६॥
स्वर रहित मन्त्र
स्तोमस्य नो विभावरि रात्रि राजेव जोषसे। असाम सर्ववीरा भवाम सर्ववेदसो व्युच्छन्तीरनूषसः ॥
स्वर रहित पद पाठस्तोमस्य। नः। विभावरि। रात्रि। राजाऽइव। जोषसे। असाम। सर्वऽवीराः। भवाम। सर्वऽवेदसः। विऽउच्छन्तीः। अनु। उषसः ॥४९.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 49; मन्त्र » 6
विषय - रात्रि में रक्षा का उपदेश।
पदार्थ -
(विभावरि) हे चमकवाली (रात्रि) रात्रि ! (नः) हमारे (स्तोमस्य) स्तोत्र का (राजा इव) राजा के समान (जोषसे) तू सेवन करती रहे। (व्युच्छन्तीः) विविध प्रकार चमकती हुई (उषसः अनु) उषाओं के साथ-साथ हम (सर्ववीराः) सब वीरोंवाले (असाम) होवें, और (सर्ववेदसः) सब सम्पत्तिवाले (भवाम) होवें ॥६॥
भावार्थ - मनुष्य ताराओंवाली रात्रि के सुन्दर उपयोग से स्तुतियोग्य कर्म करके सदा बड़े-बड़े वीर पुरुषोंवाले और बड़ी सम्पत्तिवाले होवें ॥६॥
टिप्पणी -
६−(स्तोमस्य) स्तोत्रस्य (नः) अस्माकम् (विभावरि) हे विशेषदीप्तियुक्ते (रात्रि) (राजा) (इव) यथा (जोषसे) लेटि अडागमः। सेवस्व (असाम) (सर्ववीराः) सर्ववीरोपेताः (भवाम) (सर्ववेदसः) बहुसम्पत्तियुक्ताः (व्युच्छन्तीः) विशेषेण भासमानाः (अनु) अनुलक्ष्य (उषसः) प्रभातवेलाः ॥