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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 49 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 49/ मन्त्र 6
    ऋषिः - गोपथः, भरद्वाजः देवता - रात्रिः छन्दः - आस्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - रात्रि सूक्त
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    स्तोम॑स्य नो विभावरि॒ रात्रि॒ राजे॑व जोषसे। असा॑म॒ सर्व॑वीरा॒ भवा॑म॒ सर्व॑वेदसो व्यु॒च्छन्ती॒रनू॒षसः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्तोम॑स्य। नः॒। वि॒भा॒व॒रि॒। रात्रि॑। राजा॑ऽइव। जो॒ष॒से॒। असा॑म। सर्व॑ऽवीराः। भवा॑म। सर्व॑ऽवेदसः। वि॒ऽउ॒च्छन्तीः॑। अनु। उषसः ॥४९.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्तोमस्य नो विभावरि रात्रि राजेव जोषसे। असाम सर्ववीरा भवाम सर्ववेदसो व्युच्छन्तीरनूषसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्तोमस्य। नः। विभावरि। रात्रि। राजाऽइव। जोषसे। असाम। सर्वऽवीराः। भवाम। सर्वऽवेदसः। विऽउच्छन्तीः। अनु। उषसः ॥४९.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 49; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रात्रि में रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (विभावरि) हे चमकवाली (रात्रि) रात्रि ! (नः) हमारे (स्तोमस्य) स्तोत्र का (राजा इव) राजा के समान (जोषसे) तू सेवन करती रहे। (व्युच्छन्तीः) विविध प्रकार चमकती हुई (उषसः अनु) उषाओं के साथ-साथ हम (सर्ववीराः) सब वीरोंवाले (असाम) होवें, और (सर्ववेदसः) सब सम्पत्तिवाले (भवाम) होवें ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्य ताराओंवाली रात्रि के सुन्दर उपयोग से स्तुतियोग्य कर्म करके सदा बड़े-बड़े वीर पुरुषोंवाले और बड़ी सम्पत्तिवाले होवें ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(स्तोमस्य) स्तोत्रस्य (नः) अस्माकम् (विभावरि) हे विशेषदीप्तियुक्ते (रात्रि) (राजा) (इव) यथा (जोषसे) लेटि अडागमः। सेवस्व (असाम) (सर्ववीराः) सर्ववीरोपेताः (भवाम) (सर्ववेदसः) बहुसम्पत्तियुक्ताः (व्युच्छन्तीः) विशेषेण भासमानाः (अनु) अनुलक्ष्य (उषसः) प्रभातवेलाः ॥

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    भाषार्थ

    (रात्रि) हे रात्री के समान सुखदायिके, (विभावरि) ज्योतिर्मयी जगन्मातः! (राजा इव) राजा के सदृश (नः) हमारी (स्तोमस्य) स्तुति का (जोषसे) आप प्रीतिपूर्वक सेवन कीजिए। आपकी स्तुति द्वारा (सर्ववीराः) हम सब धर्मवीर (आसाम) हो जाएँ। (सर्ववेदसः) सम्पूर्ण आध्यात्मिक सम्पत्ति वाले (भवाम) हो जाएँ। (व्युच्छन्तीः) अन्धकार को हटाती हुई (उषसः) उषाओं को (अनु) लक्ष्य करके, अर्थात् उषाकाल के चमकते रहते, और सूर्योदय से पूर्व तक प्रातः सन्ध्या में रत रहना चाहिए।

    टिप्पणी

    [रात्रि= राति सुखं ददातीति रात्री (उणा० ४.६८), महर्षि दयानन्द। अनूषसः=प्रातःकाल की सन्ध्योपासना का वर्णन किया गया है। जब तक सूर्योदय न हो, तब तक उपासनारत रहना चाहिए।]

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    विषय

    बल व ज्ञान

    पदार्थ

    १. हे (विभावरि) = तारों के प्रकाशवाली (रात्रि) = रात्रिदेवते! तू (न:) = हमारे (स्तोमस्य) = स्तोत्र का इसप्रकार (जोषसे) = प्रीतिपूर्वक सेवन कर, (इव) = जैसेकि (राजा) = एक राजा किसी विद्वान् से किये गये स्तोत्र का सेवन करता है। २. हम रात्रि के महत्व को समझें और उसमें ठीक प्रकार से निद्रा का अनुभव करके (व्युच्छन्ती:) = अन्धकार को दूर करती हुई (उपस: अनु) = उषाकालों के साथ, अर्थात् इन उषाकालों में प्रबुद्ध होकर (सर्ववीरा:) = वीरतापूर्ण सब अंगोंवाले (भवाम) = हों तथा सर्ववेदसः सब वस्तुओं के ज्ञानवाले (भवाम) = हों। अथवा सब आवश्यक धनों के कमानेवाले बनें। रात्रि में निद्रा शरीर व मन की थकावट को दूर कर देती है। मनुष्य अपने को तरोताज़ा अनुभव करता है। शरीर के अंग सबल बन जाते हैं और बुद्धि ठीक से विषयों का ग्रहण करने लगती हैं।

    भावार्थ

    रात्रि के महत्त्व को ठीक प्रकार समझकर यदि हम निद्रा में उसका ठीक प्रयोग करेंगे तो प्रात: अपने को सबल व स्फूर्तियुक्त बुद्धिवाला अनुभव करेंगे।

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    विषय

    ‘रात्रि’ परम शक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (विभावरि) तेजस्विनि ! हे (रात्रि) रात्रि ! सुखदात्रि ! एवं सबसे ऊपर विराजमान राजशक्ने ! तू (राजा इव) राजा के समान ही (नः) हमारे (स्तोमस्य) सामूहिक वीर्य अर्थात् बल और वीरसमूहों को (जोषसे) अपने प्रयोग में लाती है। इसलिये (व्युच्छन्तीः उषसः अनु) नित्य निरन्तर प्रकट होने वाली उपाय अर्थात् शत्रुदाहक सेनाओं के रूप में हम लोग सदा (सर्ववीराः) सर्वत्र वीर (असाम्) होकर रहें और (सर्ववेदसः) समस्त ऐश्वर्यों से युक्त (भवाम्) हों।

    टिप्पणी

    (द्वि० ० च०) ‘जोषसि। यथा नः सर्ववीरा भ०’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोपथो भरद्वाजश्च ऋषी। रात्रिर्देवता। १-५, ८ त्रिष्टुभः। ६ आस्तारपंक्तिः। ७ पथ्यापंक्तिः। १० त्र्यवसाना षट्पदा जगती। दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ratri

    Meaning

    O night of splendour, you enjoy our song of adoration like a queen. Pray let us all be blest with noble progeny worthy of the brave, let us be masters of all wealth as in unison with the rising dawns of radiance.

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    Translation

    O glowful might, you rehsh our prine: s nas abe y SINE Through the breaking of dawns may d De catt alt out heroic sons and be with all our possessions

    Comments / Notes

    Text is not clear in the book. If someone has a clearer copy, please edit this translation

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    Translation

    This splendid night meets over praise song like a king. May we become possessors of all kind of wealth and blessed with many heroes with the flashing dawns.

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    Translation

    O bright Ratri, peace-giving (Prakriti) thou appreciates our praises like the king.- Let us be brave in every respect, and possessed of all sorts of fortunes and knowledge, after the dawns, revealing them every morning.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(स्तोमस्य) स्तोत्रस्य (नः) अस्माकम् (विभावरि) हे विशेषदीप्तियुक्ते (रात्रि) (राजा) (इव) यथा (जोषसे) लेटि अडागमः। सेवस्व (असाम) (सर्ववीराः) सर्ववीरोपेताः (भवाम) (सर्ववेदसः) बहुसम्पत्तियुक्ताः (व्युच्छन्तीः) विशेषेण भासमानाः (अनु) अनुलक्ष्य (उषसः) प्रभातवेलाः ॥

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