अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 54/ मन्त्र 3
का॒लो ह॑ भू॒तं भव्यं॑ च पु॒त्रो अ॑जनयत्पु॒रा। का॒लादृचः॒ सम॑भव॒न्यजुः॑ का॒लाद॑जायत ॥
स्वर सहित पद पाठका॒लः। ह॒। भू॒तम्। भव्य॑म्। च॒। पु॒त्रः। अ॒ज॒न॒य॒त्। पु॒रा। का॒लात्। ऋचः॑। सम्। अ॒भ॒व॒न्। यजुः॑। का॒लात्। अ॒जा॒य॒त॒ ॥५४.३॥
स्वर रहित मन्त्र
कालो ह भूतं भव्यं च पुत्रो अजनयत्पुरा। कालादृचः समभवन्यजुः कालादजायत ॥
स्वर रहित पद पाठकालः। ह। भूतम्। भव्यम्। च। पुत्रः। अजनयत्। पुरा। कालात्। ऋचः। सम्। अभवन्। यजुः। कालात्। अजायत ॥५४.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 54; मन्त्र » 3
विषय - काल की महिमा का उपदेश।
पदार्थ -
(कालः) कालरूपी (पुत्रः) पुत्र ने (ह) ही (भूतम्) बीता हुआ (च) और (भव्यम्) होनेवाला (पुरा) पहिले (अजनयत्) उत्पन्न किया है। (कालात्) काल से (ऋचः) ऋचाएँ [गुणप्रकाशक विद्याएँ] (सम् अभवन्) उत्पन्न हुई हैं, (कालात्) काल से (यजुः) यजुर्वेद [सत्कर्मों का ज्ञान] (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥३॥
भावार्थ - नित्य वर्तमान काल पिता के समान पहिले और पुत्र के समान पीछे भी विद्यमान रहता है-[देखो गत सूक्त मन्त्र ४]। काल के ही प्रभाव से सब आगे-पीछे की सृष्टि और वेदों का प्रादुर्भाव होता है ॥३॥
टिप्पणी -
३−(कालः) (ह) एव (भूतम्) अतीतम् (भव्यम्) भविष्यत् (च) (पुत्रः) पुत्र इव पश्चाद् वर्तमानः (अजनयत्) उत्पादितवान् (पुरा) पूर्वम् (कालात्) (ऋचः) ऋग्वेदमन्त्राः। गुणप्रकाशिका विद्याः (सम् अभवन्) अजायन्त (यजुः) यजुर्वेदः सत्कर्मणां ज्ञानम् (कालात्) (अजायत्) ॥