अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 54/ मन्त्र 4
का॒लो य॒ज्ञं समै॑रयद्दे॒वेभ्यो॑ भा॒गमक्षि॑तम्। का॒ले ग॑न्धर्वाप्स॒रसः॑ का॒ले लो॒काः प्रति॑ष्ठिताः ॥
स्वर सहित पद पाठका॒लः। य॒ज्ञम्। सम्। ऐ॒र॒य॒त्। दे॒वेभ्यः॑। भा॒गम्। अक्षि॑तम्। का॒ले। ग॒न्ध॒र्व॒ऽअ॒प्स॒रसः॑। का॒ले। लो॒काः। प्रति॑ऽस्थिताः ॥५४.४॥
स्वर रहित मन्त्र
कालो यज्ञं समैरयद्देवेभ्यो भागमक्षितम्। काले गन्धर्वाप्सरसः काले लोकाः प्रतिष्ठिताः ॥
स्वर रहित पद पाठकालः। यज्ञम्। सम्। ऐरयत्। देवेभ्यः। भागम्। अक्षितम्। काले। गन्धर्वऽअप्सरसः। काले। लोकाः। प्रतिऽस्थिताः ॥५४.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 54; मन्त्र » 4
विषय - काल की महिमा का उपदेश।
पदार्थ -
(कालः) काल ने (यज्ञम्) यज्ञ [सत्कर्म] को (देवेभ्यः) विद्वानों के लिये (अक्षितम्) अक्षय (भागम्) भाग (सम्) पूरा-पूरा (ऐरयत्) भेजा है। (काले) काल में (गन्धर्वाप्सरसः) गन्धर्व [पृथिवी पर धरे हुए पदार्थ] और अप्सराएँ [आकाश में चलनेवाले पदार्थ], और (काले) काल में (लोकाः) सब लोक (प्रतिष्ठिताः) रक्खे हुए हैं ॥४॥
भावार्थ - समय के उपयोग से विद्वान् लोग सत्कर्म करके सद्गति पाते हैं और काल में ही संसार के सब पदार्थ ठहरे हैं ॥४॥
टिप्पणी -
४−(कालः) (यज्ञम्) सद्व्यवहारम् (सम्) सम्यक् (ऐरयत्) प्रेरितवान् (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः (भागम्) अंशम् (अक्षितम्) अक्षीणम् (काले) (गन्धर्वाप्सरसः) अ० १९।३६।६। गवि पृथिव्यां धृताः पदार्थाः अप्सु आकाशे सरणशीलाश्च पदार्थाः (काले) (लोकाः) सूर्यादयः (प्रतिष्ठिताः) दृढं स्थिताः ॥