अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 6/ मन्त्र 13
सूक्त - नारायणः
देवता - पुरुषः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - जगद्बीजपुरुष सूक्त
तस्मा॑द्य॒ज्ञात्स॑र्व॒हुत॒ ऋचः॒ सामा॑नि जज्ञिरे। छन्दो॑ ह जज्ञिरे॒ तस्मा॒द्यजु॒स्तस्मा॑दजायत ॥
स्वर सहित पद पाठतस्मा॑त्। य॒ज्ञात्। स॒र्व॒ऽहुतः॑। ऋचः॑। सामा॑नि। ज॒ज्ञि॒रे॒। छन्दः॑। ह॒। ज॒ज्ञि॒रे॒। तस्मा॑त्। यजुः॑। तस्मा॑त्। अ॒जा॒य॒त॒ ॥६.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे। छन्दो ह जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत ॥
स्वर रहित पद पाठतस्मात्। यज्ञात्। सर्वऽहुतः। ऋचः। सामानि। जज्ञिरे। छन्दः। ह। जज्ञिरे। तस्मात्। यजुः। तस्मात्। अजायत ॥६.१३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 6; मन्त्र » 13
विषय - सृष्टिविद्या का उपदेश।
पदार्थ -
(तस्मात्) उस (यज्ञात्) पूजनीय (सर्वहुतः) सब के दाता [अन्न आदि देनेहारे] [पुरुष परमात्मा] से (ऋचः) ऋग्वेद [पदार्थों की गुणप्रकाशक विद्या] के मन्त्र और (सामानि) सामवेद [मोक्षविद्या] के मन्त्र (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए। (तस्मात्) उससे (ह) ही (छन्दः) अथर्ववेद [आनन्ददायक विद्या] के मन्त्र (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए, और (तस्मात्) उस से (यजुः) यजुर्वेद [सत्कर्मों का ज्ञान] (अजायत) उत्पन्न हुआ ॥१३॥
भावार्थ - जिस परमात्मा ने संसार के हित के लिये ऋग्वेदादि चार वेद प्रकाशित किये हैं, सब मनुष्य उन वेदों के अनुकूल चलकर उसकी भक्ति करें ॥१३॥
टिप्पणी -
यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।९०।९ और यजुर्वेद ३१।७ ॥ १३−(तस्मात्) पूर्वोक्तात् पुरुषात् (यज्ञात्) पूजनीयात् (सर्वहुतः) हु दानादानादनेषु-क्विप्। सर्वेभ्योऽन्नादिदातुः सकाशात् (ऋचः) ऋग्वेदस्य पदार्थगुणप्रकाशिकाया विद्याया मन्त्राः (सामानि) सामवेदस्य मोक्षज्ञानस्य मन्त्राः (जज्ञिरे) उत्पन्नाः (छन्दः) जसः सुः। छन्दांसि। अथर्ववेदस्य आह्लादकज्ञानस्य मन्त्राः (ह) निश्चयेन (जज्ञिरे) (तस्मात्) (यजुः) यजुर्वेदः। सत्कर्मणां ज्ञानम् (अजायत) ॥