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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 102

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 102/ मन्त्र 1
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१०२

    ई॒लेन्यो॑ नम॒स्यस्ति॒रस्तमां॑सि दर्श॒तः। सम॒ग्निरि॑ध्यते॒ वृषा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ई॒लेन्य॑: । न॒म॒स्य॑: । ति॒र: । तमां॑सि । द॒र्श॒त: ॥ सम् । अ॒ग्नि: । इ॒ध्य॒ते॒ । वृषा॑ । १०२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ईलेन्यो नमस्यस्तिरस्तमांसि दर्शतः। समग्निरिध्यते वृषा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ईलेन्य: । नमस्य: । तिर: । तमांसि । दर्शत: ॥ सम् । अग्नि: । इध्यते । वृषा । १०२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 102; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (ईलेन्यः) खोजने योग्य (नमस्यः) सत्कार करने योग्य, (तमांसि) अन्धकारों को (तिरः) हटानेवाला, (दर्शतः) देखने योग्य, (वृषा) बलवान् (अग्निः) अग्नि [प्रकाशमान परमेश्वर] (सम्) भले प्रकार (इध्यते) प्रकाश करता है ॥१॥

    भावार्थ - मनुष्य अन्धकारनाशक परमात्मा को प्रत्येक पदार्थ में साक्षात् करके अपने हृदय को प्रकाशमान करे ॥१•॥

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