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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 13

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 13/ मन्त्र 2
    सूक्त - गोतमः देवता - मरुद्गणः छन्दः - जगती सूक्तम् - सूक्त-१३

    आ वो॑ वहन्तु॒ सप्त॑यो रघु॒ष्यदो॑ रघु॒पत्वा॑नः॒ प्र जि॑गात बा॒हुभिः॑। सी॑दता ब॒र्हिरु॒रु वः॒ सद॑स्कृ॒तं मा॒दय॑ध्वं मरुतो॒ मध्वो॒ अन्ध॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । व॒: । व॒ह॒न्तु॒ । सप्त॒य: । र॒घु॒ऽस्यद॑: । र॒घु॒ऽपत्वा॑न: । प्र । जि॒गा॒त॒ । बा॒हुऽभि॑: ॥ सीद॑त । आ । ब॒हि॑: । उ॒रु । व॒: । सद॑: ।कृ॒तम् । मा॒दय॑ध्वम् । म॒रु॒त॒: । मध्व॑: । अन्ध॑स: ॥१३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ वो वहन्तु सप्तयो रघुष्यदो रघुपत्वानः प्र जिगात बाहुभिः। सीदता बर्हिरुरु वः सदस्कृतं मादयध्वं मरुतो मध्वो अन्धसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । व: । वहन्तु । सप्तय: । रघुऽस्यद: । रघुऽपत्वान: । प्र । जिगात । बाहुऽभि: ॥ सीदत । आ । बहि: । उरु । व: । सद: ।कृतम् । मादयध्वम् । मरुत: । मध्व: । अन्धस: ॥१३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 13; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (मरुतः) हे विद्वान् शूरो ! (वः) तुमको (रघुष्यदः) शीघ्रगामी (सप्तयः) घोड़े (आ) सब ओर (वहन्तु) ले चलें, (रघुपत्वानः) शीघ्रगामी तुम (बाहुभिः) भुजाओं [हस्तक्रियाओं] से (प्र जिगात) आगे बढ़ो। और (उरु) चौड़े (बर्हिः) आकाश में (आ सीदत) आओ जाओ, (वः) तुम्हारे लिये (सदः) स्थान (कृतम्) बनाया गया है, (मध्वः) मधुर (अन्धसः) अन्न से (मादयध्वम्) [सबको] तृप्त करो ॥२॥

    भावार्थ - विद्वान् लोग क्रियाकुशल होकर शिल्पविद्या से यान विमान आदि द्वारा जल, थल और आकाश में जाना-आना करके अन्न आदि उत्तम पदार्थों की प्राप्ति से सबको प्रसन्न करें। मरुत् लोगों के विषय में-अथ० १।२०।१ देखो ॥२॥

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