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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 139

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 139/ मन्त्र 3
    सूक्त - शशकर्णः देवता - अश्विनौ छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त १३९

    ये वां॒ दंसां॑स्यश्विना॒ विप्रा॑सः परिमामृ॒शुः। ए॒वेत्का॒ण्वस्य॑ बोधतम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । वा॒म् । दंसां॑सि । अ॒श्वि॒ना॒ । विप्रा॑स: । प॒रि॒ऽम॒मृ॒क्षु: ॥ ए॒व । इत् । का॒ण्वस्य॑ । बो॒ध॒त॒म् ॥१३९.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये वां दंसांस्यश्विना विप्रासः परिमामृशुः। एवेत्काण्वस्य बोधतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । वाम् । दंसांसि । अश्विना । विप्रास: । परिऽममृक्षु: ॥ एव । इत् । काण्वस्य । बोधतम् ॥१३९.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 139; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (अश्विना) हे दोनों अश्वी ! [चतुर माता-पिता] (वाम्) तुम दोनों के (दंसांसि) कर्मों को (ये) जिन (विप्रासः) बुद्धिमानों ने (परिममृशुः) विचारा है, (एव इत्) वैसे ही [उन के बीच] (काण्वस्य) बुद्धिमान् के किये कर्म का (बोधतम्) तुम दोनों ज्ञान करो ॥३॥

    भावार्थ - जैसे विद्वान् लोग माता-पिता आदि गुरुजनों को उत्तम प्रकार से विचारें, वैसे ही गुरुजन भी विद्वानों का आदर करें ॥३॥

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