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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 26

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 26/ मन्त्र 3
    सूक्त - शुनःशेपः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२६

    अनु॑ प्र॒त्नस्यौक॑सो हु॒वे तु॑विप्र॒तिं नर॑म्। यं ते॒ पूर्वं॑ पि॒ता हु॒वे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अनु॑ । प्र॒त्नस्य॑ । ओक॑स: । हु॒वे । तु॒वि॒ऽप्र॒तिम् । नर॑म् ॥ यम् । ते॒ । पूर्व॑म् । पि॒ता । हु॒वे ॥२६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनु प्रत्नस्यौकसो हुवे तुविप्रतिं नरम्। यं ते पूर्वं पिता हुवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनु । प्रत्नस्य । ओकस: । हुवे । तुविऽप्रतिम् । नरम् ॥ यम् । ते । पूर्वम् । पिता । हुवे ॥२६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 26; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    [हे मनुष्य !] (प्रत्नस्य) पुराने (ओकसः) घर के [उत्पन्न हुए] (तुविप्रतिम्) बहुत पदार्थों के प्रत्यक्ष पहुँचानेवाले (नरम्) पुरुष को (अनु हुवे) मैं पुकारता हूँ, (यम्) जिस [पुरुष] को (पूर्वम्) पहिले काल में (ते) तेरा (पिता) पिता (हुए) बुलाता था ॥३॥

    भावार्थ - जो कोई प्रतिष्ठित घराने का पुरुष अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाकर उपकार करे, उसको लोग आदर करके बुलावें ॥३॥

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