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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 28

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 28/ मन्त्र 4
    सूक्त - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२८

    अ॒पामू॒र्मिर्मद॑न्निव॒ स्तोम॑ इन्द्राजिरायते। वि ते॒ मदा॑ अराजिषुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पाम् । ऊ॒र्मि: । मद॑न्ऽइव । स्तोम॑: । इ॒न्द्र॒ । अ॒जि॒र॒ऽय॒ते॒ । वि । ते॒ । मदा॑: । अ॒रा॒जि॒षु॒: ॥२८.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपामूर्मिर्मदन्निव स्तोम इन्द्राजिरायते। वि ते मदा अराजिषुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपाम् । ऊर्मि: । मदन्ऽइव । स्तोम: । इन्द्र । अजिरऽयते । वि । ते । मदा: । अराजिषु: ॥२८.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 28; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (ते) तेरी (स्तोमः) बड़ाई (अपाम्) जलों की (मदन्) हर्ष बढ़ानेवाली (ऊर्मिः इव) लहर के समान (अजिरायते) वेग से चलती है, और (मदाः) आनन्द (वि अराजिषुः) विराजते हैं [विविध प्रकार ऐश्वर्य बढ़ाते हैं] ॥४॥

    भावार्थ - न्यायकारी जगदीश्वर की उत्तम नीति को मानकर सब लोग आनन्द पाकर शीघ्र ऐश्वर्य बढ़ावें ॥४॥

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