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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 29

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 29/ मन्त्र 3
    सूक्त - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२९

    अ॒पां फेने॑न॒ नमु॑चेः॒ शिर॑ इ॒न्द्रोद॑वर्तयः। विश्वा॒ यदज॑यः॒ स्पृधः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पाम् । फेने॑न । नमु॑चे: । शिर॑: । इ॒न्द्र॒ । उत् । अ॒व॒र्त॒य॒: ॥ विश्वा॑: । यत् । अज॑य: । स्पृध॑: ॥२९.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपां फेनेन नमुचेः शिर इन्द्रोदवर्तयः। विश्वा यदजयः स्पृधः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपाम् । फेनेन । नमुचे: । शिर: । इन्द्र । उत् । अवर्तय: ॥ विश्वा: । यत् । अजय: । स्पृध: ॥२९.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 29; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले सेनापति] (अपाम्) जलों के (फेनेन) फेन [झाग के समान हलके तीक्ष्ण शस्त्रविशेष] से (नमुचेः) न छूटने योग्य [दण्डनीय पापी] के (शिरः) शिर को (उत् अवर्तयः) तूने उछाल दिया है, (यत्) जबकि (विश्वाः) सब (स्पर्धः) झगड़नेवाली सेनाओं को (अजयः) तूने जीता है ॥३॥

    भावार्थ - सेनापति पानी के झाग के समान हलके तीक्ष्ण चक्र आदि हथियारों से शत्रु का शिर काटकर उसकी सेना को जीते ॥३॥

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