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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 48

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 48/ मन्त्र 3
    सूक्त - खिलः देवता - गौः, सूर्यः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४८

    वज्रा॑पव॒साध्यः॑ की॒र्तिर्म्रि॒यमा॑ण॒माव॑हन्। मह्य॒मायु॑र्घृ॒तं पयः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वज्रा॑पव॒साध्य॑: । की॒र्ति: । म्रि॒यमा॑ण॒म् । आव॑हन् ॥ मह्य॑म् । आयु॑: । घृ॒तम् । पय॑: ॥४८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वज्रापवसाध्यः कीर्तिर्म्रियमाणमावहन्। मह्यमायुर्घृतं पयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वज्रापवसाध्य: । कीर्ति: । म्रियमाणम् । आवहन् ॥ मह्यम् । आयु: । घृतम् । पय: ॥४८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 48; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (वज्रापवसाध्यः) शस्त्रों के शोधनेवालों [उजले शस्त्रवालों] की सिद्धि करनेवाला, (कीर्तिः) कीर्तिरूप [बड़े ही यश वाला, परमेश्वर] (मह्यम्) मेरे लिये (म्रियमाणम्) नष्ट होते हुए (आयुः) जीवन, (घृतम्) घी [वा जल] और (पयः) दूध [वा अन्न] को (आवहन्) यथावत् लाता हुआ है ॥३॥

    भावार्थ - जब हम किसी विपत्ति से निर्बल होकर अति दुःखी होवें, तब हम उस जगत्पालक परमात्मा का आश्रय लेकर शस्त्र आदि कर्तव्य ठीक करके कार्यसिद्धि करें ॥३॥

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