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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 49

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 49/ मन्त्र 2
    सूक्त - खिलः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४९

    श॒क्रो वाच॒मधृ॑ष्टा॒योरु॑वाचो॒ अधृ॑ष्णुहि। मंहि॑ष्ठ॒ आ म॑द॒र्दिवि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒क्र: । वा॒च॒म् । अधृ॑ष्टा॒य । उरु॑वा॒च: । अधृ॑ष्णुहि ॥ मंहि॑ष्ठ॒: । आ । म॑द॒र्दिवि॑ ॥४९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शक्रो वाचमधृष्टायोरुवाचो अधृष्णुहि। मंहिष्ठ आ मदर्दिवि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शक्र: । वाचम् । अधृष्टाय । उरुवाच: । अधृष्णुहि ॥ मंहिष्ठ: । आ । मदर्दिवि ॥४९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 49; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    [हे विद्वान् !] (शक्रः) शक्तिमान् तू (उरुवाचः) बहुत बड़ी वाणीवाले [परमेश्वर] की (वाचम्) वाणी को (अधृष्टाय) डरे हुए पुरुष के लिये (अधृष्णुहि) मत शक्तिहीन कर। वह [परमेश्वर] (मदर्दिवि) दीनता जीतने में (आ) सब ओर से (मंहिष्ठः) अत्यन्त उदार है ॥२॥

    भावार्थ - विद्वान् पुरुष दीन-हीन पुरुषों के सुधार के लिये संकोच छोड़कर शक्तिमती वेदवाणी का उपदेश करें, क्योंकि परमात्मा उद्योगी के लिये महादानी है ॥२॥

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