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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 6

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 6/ मन्त्र 2
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६

    इन्द्र॑ क्रतु॒विदं॑ सु॒तं सोमं॑ हर्य पुरुष्टुत। पिबा वृ॑षस्व॒ तातृ॑पिम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । क्र॒तु॒ऽविद॑म् । सु॒तम् । सोम॑म् । ह॒र्य॒ । पु॒रु॒ऽस्तु॒त॒ ॥ पिब॑ । आ । वृ॒ष॒स्व॒ । ततृ॑पिम् ॥६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र क्रतुविदं सुतं सोमं हर्य पुरुष्टुत। पिबा वृषस्व तातृपिम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र । क्रतुऽविदम् । सुतम् । सोमम् । हर्य । पुरुऽस्तुत ॥ पिब । आ । वृषस्व । ततृपिम् ॥६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 6; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (पुरुष्टुत) हे बहुतों से बड़ाई किये गये (इन्द्रः) इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (क्रतुविदम्) बुद्धि के प्राप्त करानेवाले, (तातृपिम्) तृप्त करनेवाले, (सुतम्) सिद्ध किये हुए (सोमम्) सोम [महौषधियों के रस] की (हर्य) इच्छा कर, (पिब) पी (आ) और (वृषस्व) बलवान् हो ॥२॥

    भावार्थ - राजा बल और बुद्धि बढ़ानेवाले खान-पान के भोजन से तृप्त होकर स्वस्थ रहे ॥२॥

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