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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 73

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 73/ मन्त्र 6
    सूक्त - वसुक्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - अभिसारिणी सूक्तम् - सूक्त-७३

    यो वा॒चा विवा॑चो मृ॒ध्रवा॑चः पु॒रू स॒हस्राशि॑वा ज॒घान॑। तत्त॒दिद॑स्य॒ पौंस्यं॑ गृणीमसि पि॒तेव॒ यस्तवि॑षीं वावृ॒धे शवः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । वा॒चा । विऽवा॑च: । मृ॒ध्रऽवा॑च: । पु॒रू । स॒हस्रा॑ । अशि॑वा । ज॒घान॑ ॥ तत्ऽत॑त् । इत् । अ॒स्य॒ । पौंस्य॑म् । गृ॒णी॒म॒सि॒ । पि॒ताऽइ॑व । य: । तवि॑षीम् । व॒वृ॒धे । शव॑: ॥७३.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो वाचा विवाचो मृध्रवाचः पुरू सहस्राशिवा जघान। तत्तदिदस्य पौंस्यं गृणीमसि पितेव यस्तविषीं वावृधे शवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । वाचा । विऽवाच: । मृध्रऽवाच: । पुरू । सहस्रा । अशिवा । जघान ॥ तत्ऽतत् । इत् । अस्य । पौंस्यम् । गृणीमसि । पिताऽइव । य: । तविषीम् । ववृधे । शव: ॥७३.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 73; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (यः) जिस [शूर] ने (वाचा) [अपनी सत्य] वाणी से (विवाचः) विरुद्ध बोलनेवाले, (मृध्रवाचः) हिंसक वाणी वाले के (पुरु) बहुत (सहस्रा) सहस्रों (अशिवा) क्रूर कर्मों को (जघान) नष्ट किया है और (यः) जिस [शूर] ने (पिता इव) पिता के समान (तविषीम्) हमारी शक्ति और (शवः) पराक्रम को (वावृधे) बढ़ाया है, (अस्य) उसके (तत्-तत्) उस-उस (इत्) ही (पौंस्यम्) मनुष्यपन [वा बल] की (गृणीमसि) हम बड़ाई करते हैं ॥६॥

    भावार्थ - जो वीर पुरुष दुराचारियों का नाश करके प्रजा को कष्ट से छुड़ाता है, प्रजागण उस गुणवान् पुरुष को ही मुखिया बनाकर प्रीति करते हैं ॥६॥

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