Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 8

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 8/ मन्त्र 3
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-८

    आपू॑र्णो अस्य क॒लशः॒ स्वाहा॒ सेक्ते॑व॒ कोशं॑ सिषिचे॒ पिब॑ध्यै। समु॑ प्रि॒या आव॑वृत्र॒न्मदा॑य प्रदक्षि॒णिद॒भि सोमा॑स॒ इन्द्र॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आऽपू॑र्ण: । अ॒स्य॒ । क॒लश॑: । स्वाहा॑ । सेक्ता॑ऽइव । कोश॑म् । ‍सि॒स॒चे॒ । पिब॑ध्यै ॥ सम् । ऊं॒ इति॑ । प्रि॒या । आ । अ॒वृ॒त्र॒न् । मदा॑य । प्र॒ऽद॒क्षि॒णित् । अ॒भि । सोमा॑स: । इन्द्र॑म् ॥८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आपूर्णो अस्य कलशः स्वाहा सेक्तेव कोशं सिषिचे पिबध्यै। समु प्रिया आववृत्रन्मदाय प्रदक्षिणिदभि सोमास इन्द्रम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आऽपूर्ण: । अस्य । कलश: । स्वाहा । सेक्ताऽइव । कोशम् । ‍सिसचे । पिबध्यै ॥ सम् । ऊं इति । प्रिया । आ । अवृत्रन् । मदाय । प्रऽदक्षिणित् । अभि । सोमास: । इन्द्रम् ॥८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 8; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (अस्य) इस [महापुरुष] का (कलशः) कलस (आपूर्णः) मुँहामुँह भरा है, (स्वाहा) सुन्दर वाणी के साथ (सेक्ता इव) भरनेवाले के समान मैंने (कोशम्) बर्तन को (पिबध्यै) पीने के लिये (सिसिचे) भरा है। (प्रियाः) पियारे (प्रदक्षिणित्) दाहिनी ओर को प्राप्त होनेवाले (सोमासः) सोम [महौषधियों के रस] (मदाय) हर्ष के लिये (इन्द्रम् अभि) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवाले प्रधान] को (उ) ही (सम्) यथाविधि (आ) सब ओर (अववृत्रन्) वर्तमान हुए हैं ॥३॥

    भावार्थ - विद्वान् सद्वैद्य उत्तम-उत्तम अन्न आदि ओषधियों के रस से आदर करके प्रधान पुरुष को हृष्ट-पुष्ट रक्खें ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top