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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 8

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 8/ मन्त्र 2
    सूक्त - कुत्सः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-८

    अ॒र्वाङेहि॒ सोम॑कामं त्वाहुर॒यं सु॒तस्तस्य॑ पिबा॒ मदा॑य। उ॑रु॒व्यचा॑ ज॒ठर॒ आ वृ॑षस्व पि॒तेव॑ नः शृणुहि हू॒यमा॑नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒र्वाङ् । आ । इ॒हि॒ । सोम॑ऽकामम् । त्वा॒ । आ॒ह: । अ॒यम् । सु॒त: । तस्य॑ । पि॒ब॒ । मदा॑य ॥ उ॒रु॒ऽव्यचा॑: । ज॒ठरे॑ । आ । वृ॒ष॒स्व॒ । पि॒ताऽइ॑व । न॒: । शृ॒णु॒हि॒ । हू॒यमा॑न: ॥८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अर्वाङेहि सोमकामं त्वाहुरयं सुतस्तस्य पिबा मदाय। उरुव्यचा जठर आ वृषस्व पितेव नः शृणुहि हूयमानः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अर्वाङ् । आ । इहि । सोमऽकामम् । त्वा । आह: । अयम् । सुत: । तस्य । पिब । मदाय ॥ उरुऽव्यचा: । जठरे । आ । वृषस्व । पिताऽइव । न: । शृणुहि । हूयमान: ॥८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 8; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    [हे सभाध्यक्ष !] (अर्वाङ्) सामने (आ इहि) आ, (त्वा) तुझको (सोमकामम्) ऐश्वर्य चाहनेवाला (आहुः) वे कहते हैं, (अयम्) यह (सुतः) सिद्ध किया हुआ [सोमरस] है, (मदाय) हर्ष के लिये (तस्य) उसका (पिब) पान कर। (उरुव्यचाः) बड़े सत्कारवाला तू (जठरे) अपने पेट में [उसे] (आ वृषस्व) सींच ले, (पिता इव) पिता के समान (हूयमानः) पुकारा गया तू (नः) हमारी [बात] (शृणुहि) सुन ॥२॥

    भावार्थ - प्रजागण सभापति आदि महापुरुषों को पिता के समान उत्तम पदार्थों और हितवचनों से प्रसन्न रक्खें और प्रधान पुरुष भी प्रजाजनों को पुत्र के समान पालें ॥२॥

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