Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 10

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 10/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वा देवता - रात्रिः, धेनुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रायस्पोषप्राप्ति सूक्त

    यां दे॒वाः प्र॑ति॒नन्द॑न्ति॒ रात्रिं॑ धे॒नुमु॑पाय॒तीम्। सं॑वत्स॒रस्य॒ या पत्नी॒ सा नो॑ अस्तु सुमङ्ग॒ली ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याम् । दे॒वा: । प्र॒ति॒ऽनन्द॑न्ति । रात्रि॑म् । धे॒नुम् । उ॒प॒ऽआ॒य॒तीम् । स॒म्ऽव॒त्स॒रस्य॑ । या । पत्नी॑ । सा । न॒: । अ॒स्तु॒ । सु॒ऽम॒ङ्ग॒ली ॥१०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यां देवाः प्रतिनन्दन्ति रात्रिं धेनुमुपायतीम्। संवत्सरस्य या पत्नी सा नो अस्तु सुमङ्गली ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याम् । देवा: । प्रतिऽनन्दन्ति । रात्रिम् । धेनुम् । उपऽआयतीम् । सम्ऽवत्सरस्य । या । पत्नी । सा । न: । अस्तु । सुऽमङ्गली ॥१०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 10; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (देवाः) महात्मा पुरुष, वा सूर्य, वायु चन्द्रादि दिव्य पदार्थ (उपायतीम्) पास आती हुई (धेनुम्) तृप्त करनेवाली (याम्) जिस (रात्रिम्) दानशीला और ग्रहणशीला शक्ति, वा रात्रिरूप [प्रकृति] को (प्रतिनन्दन्ति) अभिनन्दन करते [धन्य मानते] हैं और (या) जो (संवत्सरस्य) यथावत् निवास देनेवाले [परमेश्वर] की (पत्नी) पालनशक्ति है, (सा=सा सा) वह ईश्वरी (नः) हमारेलिये (सुमङ्गली) बड़े-२ मङ्गल करनेवाली (अस्तु) होवे ॥२॥

    भावार्थ - प्रकृति ईश्वरनियम से पदार्थों को उत्पन्न करके जीवों को सुख देकर उनका दुःख हरती है और अनन्त होने से वह रात्रि वा अन्धकाररूप है। विज्ञानी पुरुष खोज लगा-लगाकर उससे उपकार लेकर विविध उन्नति करते हैं ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top