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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 16

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 16/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वा देवता - भगः, आदित्याः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - कल्याणार्थप्रार्थना

    प्रा॑त॒र्जितं॒ भग॑मु॒ग्रं ह॑वामहे व॒यं पु॒त्रमदि॑ते॒र्यो वि॑ध॒र्ता। आ॒ध्रश्चि॒द्यं मन्य॑मानस्तु॒रश्चि॒द्राजा॑ चि॒द्यं भगं॑ भ॒क्षीत्याह॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रा॒त॒:ऽजित॑म् । भग॑म् । उ॒ग्रम् । ह॒वा॒म॒हे॒ । व॒यम् । पु॒त्रम् । अदि॑ते: । य: । वि॒ऽध॒र्ता । आ॒ध्र: । चि॒त् । यम् । मन्य॑मान: । तु॒र: । चि॒त् । राजा॑ । चि॒त् । यम् । भग॑म् । भ॒क्षि॒ । इति॑ । आह॑ ॥१६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रातर्जितं भगमुग्रं हवामहे वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्ता। आध्रश्चिद्यं मन्यमानस्तुरश्चिद्राजा चिद्यं भगं भक्षीत्याह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रात:ऽजितम् । भगम् । उग्रम् । हवामहे । वयम् । पुत्रम् । अदिते: । य: । विऽधर्ता । आध्र: । चित् । यम् । मन्यमान: । तुर: । चित् । राजा । चित् । यम् । भगम् । भक्षि । इति । आह ॥१६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 16; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (वयम्) हम (प्रातर्जितम्) प्रातःकाल में [अन्धकारादि को] जीतनेवाले (भगम्) सूर्य [समान] (उग्रम्) तेजस्वी (पुत्रम्) पवित्र, अथवा बहुविधि से रक्षा करनेवाले, अथवा नरक से बचानेवाले [परमेश्वर] को (हवामहे) बुलाते हैं, (यः) जो [परमेश्वर] (अदितेः) प्रकृति वा भूमि का (विधर्त्ता) धारण करनेवाला और (यम्) जिस [परमेश्वर] को (मन्यमानः) पूजता हुआ (आध्रः) सब प्रकार धारण योग्य कंगाल, (चित्) भी, और (तुरः) शीघ्रकारी बलवान् (चित्) भी, और (राजा) ऐश्वर्यवान् राजा (चित्) भी (इति) इस प्रकार (आह) कहता है, “(यम्) यश और (भगम्) धन को (भक्षि=अहं भक्षीय) मैं सेवूँ” ॥२॥

    भावार्थ - जैसे सूर्य प्रातःकाल अन्धकार, आलस्यादि मिटाकर जीवों में नयी शक्ति देता है, ऐसे ही सब छोटे बड़े जीव और पृथिवी आदि लोक भी परमात्मा की शक्ति से अपनी अपनी शक्ति बढ़ाते हैं, उसीका धन्यवाद हम सब पिता पुत्रादि मिलकर गावें ॥२॥ ‘हवामहे’ के स्थान पर ऋग्वेद और यजुर्वेद में ‘हुवेम’ पद है ॥

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