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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 16

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 16/ मन्त्र 6
    सूक्त - अथर्वा देवता - दधिक्रावा, अश्वसमूहः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - कल्याणार्थप्रार्थना

    सम॑ध्व॒रायो॒षसो॑ नमन्त दधि॒क्रावे॑व॒ शुच॑ये प॒दाय॑। अ॑र्वाची॒नं व॑सु॒विदं॒ भगं॑ मे॒ रथ॑मि॒वाश्वा॑ वा॒जिन॒ आ व॑हन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । अ॒ध्व॒राय॑ । उ॒षस॑: । न॒म॒न्त॒ । द॒धि॒क्रावा॑ऽइव । शुच॑ये । प॒दाय॑ । अ॒र्वा॒ची॒नम् । व॒सु॒ऽविद॑म् । भग॑म् । मे॒ । रथ॑म्ऽइव । अश्वा॑: । वा॒जिन॑: । आ । व॒ह॒न्तु॒ ॥१६.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समध्वरायोषसो नमन्त दधिक्रावेव शुचये पदाय। अर्वाचीनं वसुविदं भगं मे रथमिवाश्वा वाजिन आ वहन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम् । अध्वराय । उषस: । नमन्त । दधिक्रावाऽइव । शुचये । पदाय । अर्वाचीनम् । वसुऽविदम् । भगम् । मे । रथम्ऽइव । अश्वा: । वाजिन: । आ । वहन्तु ॥१६.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 16; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (उषसः) उषायें [प्रभात वेलायें] (अध्वराय) मार्ग देने के लिए, अथवा हिंसारहित यज्ञ के लिए (सम् नमन्त=०-न्ते) झुकती हैं, (दधिक्रावा इव) जैसे चढ़ाकर चलनेवाला, वा हींसनेवाला घोड़ा (शुचये) शुद्ध [अचूक] (पदाय) पद रखने के लिये। (वाजिनः) अन्नवान् वा बलवान् वा ज्ञानवान् (अर्वाचीनम्) नवीन नवीन और (वसुविदम्) धन प्राप्त करानेवाले (भगम्) ऐश्वर्य को (मे) मेरे लिये (आ वहन्तु) लावें (अश्वाः इव) जैसे घोड़े (रथम्) रथ को [लाते हैं] ॥६॥

    भावार्थ - जैसे उषा देवी अन्धकार हटाकर मार्ग खेलती चलती है अथवा, जैसे बली और वेगवान् घोड़ा अपने अश्ववार वा रथको मार्ग चलकर ठिकाने पर शीघ्र पहुँचाता है, इसी प्रकार पुरुषार्थी पुरुष बड़े-बड़े महात्माओं के सत्सङ्ग और अनुकरण से अपना ऐश्वर्य बढ़ाते रहें ॥६॥ ‘मे’ के स्थान पर ऋग् और यजुर्वेद में ‘नः’ पद है ॥

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