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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 22

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 22/ मन्त्र 7
    सूक्त - वसिष्ठः, अथर्वा वा देवता - इन्द्रः, क्षत्रियो राजा छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अमित्रक्षयण सूक्त

    सिं॒हप्र॑तीको॒ विशो॑ अद्धि॒ सर्वा॑ व्या॒घ्रप्र॑ती॒कोऽव॑ बाधस्व॒ शत्रू॑न्। ए॑कवृ॒ष इन्द्र॑सखा जिगी॒वां छ॑त्रूय॒तामा खि॑दा॒ भोज॑नानि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सिं॒हऽप्र॑तीक: । विश॑: । अ॒ध्दि॒ । सर्वा॑: । व्या॒घ्रऽप्र॑तीक: । अव॑ । बा॒ध॒स्व॒ । शत्रू॑न् । ए॒क॒ऽवृ॒ष: । इन्द्र॑ऽसखा । जि॒गी॒वान् । श॒त्रु॒ऽय॒ताम् । आ । खि॒द॒ । भोज॑नानि ॥२२.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सिंहप्रतीको विशो अद्धि सर्वा व्याघ्रप्रतीकोऽव बाधस्व शत्रून्। एकवृष इन्द्रसखा जिगीवां छत्रूयतामा खिदा भोजनानि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सिंहऽप्रतीक: । विश: । अध्दि । सर्वा: । व्याघ्रऽप्रतीक: । अव । बाधस्व । शत्रून् । एकऽवृष: । इन्द्रऽसखा । जिगीवान् । शत्रुऽयताम् । आ । खिद । भोजनानि ॥२२.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 22; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    [हे राजन् !] (सिंहप्रतीकः) सिंहतुल्य पराक्रमी तू (सर्वाः) सब [शत्रुओंके] (विशः) मनुष्यों को (अद्धि) खाले, (व्याघ्रप्रतीकः) व्याघ्रसमान झपट कर (शत्रून्) दुष्ट वैरियों को (अव बाधस्व) हटादे। (इन्द्रसखा) परमेश्वर का मित्र, (जिगीवान्) विजयी और (एकवृषः) अद्वितीय प्रधान तू (शत्रूयताम्) शत्रु जैसे आचरणवाले मनुष्यों के (भोजनानि) भोगों के साधन धन-धान्यों को (आ खिद) छीनले ॥७॥

    भावार्थ - राजा पूर्ण पराक्रम से शत्रुओं की सेनाओं और शत्रुओं का नाश करे और सब प्रकार से विजय प्राप्त करके उन्हें अपने अधीन रक्खे ॥७॥

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