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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 3

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 3/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वा देवता - रुद्रः, व्याघ्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त

    परे॑णैतु प॒था वृकः॑ पर॒मेणो॒त तस्क॑रः। परे॑ण द॒त्वती॒ रज्जुः॒ परे॑णाघा॒युर॑र्षतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परे॑ण । ए॒तु॒ । प॒था । वृक॑: । प॒र॒मेण॑ । उ॒त । तस्क॑र: । परे॑ण । द॒त्वती॑ । रज्जु॑: । परे॑ण । अ॒घ॒ऽयु: । अ॒र्ष॒तु॒ ॥३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परेणैतु पथा वृकः परमेणोत तस्करः। परेण दत्वती रज्जुः परेणाघायुरर्षतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परेण । एतु । पथा । वृक: । परमेण । उत । तस्कर: । परेण । दत्वती । रज्जु: । परेण । अघऽयु: । अर्षतु ॥३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (वृकः) हुण्डार वा भेड़िया (परेण) दूर (पथा) मार्ग से (एतु) चला जावे, (उत) और (तस्करः) पीड़ा देनेवाला चोर (परमेण) अधिक दूर मार्ग से। (दत्वती) दान्तवाली (रज्जुः) रसरी अर्थात् साँप (परेण) दूर से, और (अघायुः) बुरा चीतनेवाला पापी (परेण) दूर से (अर्षतु) भाग जावे ॥२॥

    भावार्थ - मनुष्य अपने घर ऐसे बनावें और ऐसा प्रबन्ध करें, जिससे दुष्ट मनुष्य और हिंसक जीवों से रक्षा रहे ॥२॥

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