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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 31

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 31/ मन्त्र 6
    सूक्त - ब्रह्मास्कन्दः देवता - मन्युः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सेनानिरीक्षण सूक्त

    आभू॑त्या सह॒जा व॑ज्र सायक॒ सहो॑ बिभर्षि सहभूत॒ उत्त॑रम्। क्रत्वा॑ नो मन्यो स॒ह मे॒द्ये॑धि महाध॒नस्य॑ पुरुहूत सं॒सृजि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आऽभू॑त्या । स॒ह॒ऽजा: । व॒ज्र॒ । सा॒य॒क॒ । सह॑: । बि॒भ॒र्षि॒ । स॒ह॒ऽभू॒ते॒ । उत्ऽत॑रम् । क्रत्वा॑ । न॒: । म॒न्यो॒ इति॑ । स॒ह । मे॒दी । ए॒धि॒ । म॒हा॒ऽध॒नस्य॑ । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । स॒म्ऽसृजि॑ ॥३१.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आभूत्या सहजा वज्र सायक सहो बिभर्षि सहभूत उत्तरम्। क्रत्वा नो मन्यो सह मेद्येधि महाधनस्य पुरुहूत संसृजि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आऽभूत्या । सहऽजा: । वज्र । सायक । सह: । बिभर्षि । सहऽभूते । उत्ऽतरम् । क्रत्वा । न: । मन्यो इति । सह । मेदी । एधि । महाऽधनस्य । पुरुऽहूत । सम्ऽसृजि ॥३१.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 31; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (वज्र) वज्ररूप ! (सायक) हे शत्रुओं के अन्त करनेवाले ! (सहभूते) हे सम्पत्ति के साथ वर्तमान ! (आभूत्या सहजाः) बिभूति के साथ-साथ उत्पन्न होनेवाला तू (उत्तरम्) अधिक उत्तम (सहः) बल (बिभर्षि) धारण करता है, (पुरुहूत) बहुतों से आवाहन किये हुए (मन्यो) क्रोध ! (महाधनस्य) बड़े धन प्राप्त कराने हारे संग्राम के (संसृजि) भिड़ जाने पर (क्रत्वा सह) बुद्धि के साथ (नः) हमारा (मेदी) स्नेही (एधि) हो ॥६॥

    भावार्थ - मनुष्य संग्राम में बुद्धिपूर्वक क्रोध करके विजयी होते हैं ॥६॥

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