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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 7

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 7/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - अरातिसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अरातिनाशन सूक्त

    प्र णो॑ व॒निर्दे॒वकृ॑ता॒ दिवा॒ नक्तं॑ च कल्पताम्। अरा॑तिमनु॒प्रेमो॑ व॒यं नमो॑ अ॒स्त्वरा॑तये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । न॒: । व॒नि: । दे॒वऽकृ॑ता । दिवा॑ । नक्त॑म् । च॒ । क॒ल्प॒ता॒म् । अरा॑तिम् । अ॒नु॒ऽप्रेम॑: । व॒यम् । नम॑: । अ॒स्तु॒ । अरा॑तये ॥७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र णो वनिर्देवकृता दिवा नक्तं च कल्पताम्। अरातिमनुप्रेमो वयं नमो अस्त्वरातये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । न: । वनि: । देवऽकृता । दिवा । नक्तम् । च । कल्पताम् । अरातिम् । अनुऽप्रेम: । वयम् । नम: । अस्तु । अरातये ॥७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 7; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (देवकृता) महात्माओं की उत्पन्न की हुई (नः) हमारी (वनिः) भक्ति (दिवा) दिन (च) और (नक्तम्) रात (प्र) अच्छे प्रकार (कल्पताम्) समर्थ होवे। (वयम्) हम लोग (अरातिम्) अदान शक्ति [निर्धनता] को (अनुप्रेमः) ढूँढ कर पावें, (अरातये) अदान शक्ति को (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे ॥३॥

    भावार्थ - मनुष्य विद्वानों से शिक्षा पाकर सदा परस्पर भक्ति बढ़ावें और धैर्य से विपत्तियों को सहकर उत्तम पुरुषार्थ करें ॥३॥

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