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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 11

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 11/ मन्त्र 1
    सूक्त - प्रजापति देवता - रेतः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पुंसवन सूक्त

    समीम॑श्व॒त्थ आरू॑ढ॒स्तत्र॑ पुं॒सुव॑नं कृ॒तम्। तद्वै पु॒त्रस्य॒ वेद॑नं॒ तत्स्त्री॒ष्वा भ॑रामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒मीम् । अ॒श्व॒त्थ: । आऽरू॑ढ: । तत्र॑ । पु॒म्ऽसुव॑नम् । कृ॒तम् । तत् । वै । पुत्रस्य॑ । वेद॑नम् । तत् । स्त्री॒षु । आ । भ॒रा॒म॒सि॒ ॥११.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समीमश्वत्थ आरूढस्तत्र पुंसुवनं कृतम्। तद्वै पुत्रस्य वेदनं तत्स्त्रीष्वा भरामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शमीम् । अश्वत्थ: । आऽरूढ: । तत्र । पुम्ऽसुवनम् । कृतम् । तत् । वै । पुत्रस्य । वेदनम् । तत् । स्त्रीषु । आ । भरामसि ॥११.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 11; मन्त्र » 1

    पदार्थ -

    (अश्वत्थः) बलवानों में ठहरनेवाला पुरुष (शमीम्) शान्तस्वभाव स्त्री के प्रति (आरूढः) आरूढ हो चुकता है, (तत्र) उस काल में (पुंसुवनम्) सन्तान का उत्पत्तिकर्म (कृतम्) किया जाता है। (तत्) वह कर्म (वै) हा (पुत्रस्य) कुलशोधक संतान की (वेदनम्) प्राप्ति का कारण है, (तत्) उस कर्म को (स्त्रीषु) स्त्रियों में (आभरामसि) हम पहुँचाते हैं ॥१॥

    भावार्थ -

    वीर्यवान् पति और शान्तस्वभाव पत्नी यथाविधि परस्पर संयोग करके सन्तान उत्पन्न करें ॥१॥ इस सूक्त का विधान पुंसवनसंस्कार में भी दयानन्दकृत संस्कारविधि में है ॥

    साथ कौशिक गृहसूत्र के अनुसार शमी पर पाये जाने वाले पीपल के चूर्ण का भी सेवन स्त्री-पुरुष को  करना चाहिए। यह औषधि पुत्रोत्पादक है। 

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