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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 128

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 128/ मन्त्र 4
    सूक्त - अथर्वाङ्गिरा देवता - सोमः, शकधूमः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - राजा सूक्त

    यो नो॑ भद्रा॒हमक॑रः सा॒यं नक्त॑मथो॒ दिवा॑। तस्मै॑ ते नक्षत्रराज॒ शक॑धूम॒ सदा॒ नमः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । न॒: । भ॒द्र॒ऽअ॒हम् । अक॑र: । सा॒यम् । नक्त॑म् । अथो॒ इति॑ । दिवा॑ । तस्मै॑ । ते॒ । न॒क्ष॒त्र॒ऽरा॒ज॒ । शक॑ऽधूम । सदा॑ । नम॑: ॥१२८.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो नो भद्राहमकरः सायं नक्तमथो दिवा। तस्मै ते नक्षत्रराज शकधूम सदा नमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । न: । भद्रऽअहम् । अकर: । सायम् । नक्तम् । अथो इति । दिवा । तस्मै । ते । नक्षत्रऽराज । शकऽधूम । सदा । नम: ॥१२८.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 128; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (यः) जिस तूने (नः) हमारे लिये (सायम्) सायंकाल में, (नक्तम्) रात्रि में (अथो) और (दिवा) दिन में (भद्राहम्) शुभ दिन (अकरः) किया है। (नक्षत्रराज) हे नक्षत्रों के राजा ! (शकधूम) हे समर्थ सूर्य आदि लोकों के कँपानेवाले परमेश्वर ! (तस्मै ते) उस तेरे लिये (सदा) सदा (नमः) नमस्कार होवे ॥४॥

    भावार्थ - मनुष्य सुखनिधि परमात्मा का उपकार साक्षात् करके संसार का उपकार करते हुए उसकी आज्ञा का पालन करें ॥४॥

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