Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 16

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 16/ मन्त्र 3
    सूक्त - शौनक् देवता - चन्द्रमाः छन्दः - बृहतीगर्भा ककुम्मत्यनुष्टुप् सूक्तम् - अक्षिरोगभेषज सूक्त

    तौवि॑लि॒केऽवे॑ल॒यावा॒यमै॑ल॒ब ऐ॑लयीत्। ब॒भ्रुश्च॑ ब॒भ्रुक॑र्ण॒श्चापे॑हि॒ निरा॑ल ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तौवि॑लिके । अव॑ । ई॒ल॒य॒ । अव॑ । अ॒यम् । ऐ॒ल॒ब: । ऐ॒ल॒यी॒त् । ब॒भ्रु: । च॒ । ब॒भ्रुऽक॑र्ण: । च॒ । अप॑ । इ॒हि॒ । नि: । आ॒ल॒ ॥१६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तौविलिकेऽवेलयावायमैलब ऐलयीत्। बभ्रुश्च बभ्रुकर्णश्चापेहि निराल ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तौविलिके । अव । ईलय । अव । अयम् । ऐलब: । ऐलयीत् । बभ्रु: । च । बभ्रुऽकर्ण: । च । अप । इहि । नि: । आल ॥१६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 16; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (तौविलिके) वृद्धि से जीतनेवाले व्यवहार में [हमें] (अव) अवश्य (ईलय=ईरय) आगे बढ़ा। (अयम्) इस (ऐलबः) पृथवी के पदार्थों में व्यापक तूने [ऋषियों को] (अव) अवश्य (ऐलयीत्=०−यीः) आगे बढ़ाया है। (आल) हे समर्थ परमेश्वर ! (बभ्रुः) पोषण करनेवाला (च च) और (बभ्रुकर्णः) पोषक मनुष्यों का पतवार रूप तू (निः) नित्य (अप) आनन्द से (इहि) प्राप्त हो ॥३॥

    भावार्थ - मनुष्य पूर्व ऋषियों के समान परमेश्वर का सहारा लेकर सदा वृद्धि करें ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top