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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 22

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 22/ मन्त्र 2
    सूक्त - शन्ताति देवता - मरुद्गणः छन्दः - चतुष्पदा भुरिग्जगती सूक्तम् - भैषज्य सूक्त

    पय॑स्वतीः कृणुथा॒प ओष॑धीः शि॒वा यदेज॑था मरुतो रुक्मवक्षसः। ऊर्जं॑ च॒ तत्र॑ सुम॒तिं च॑ पिन्वत॒ यत्रा॑ नरो मरुतः सि॒ञ्चथा॒ मधु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पय॑स्वती: । कृ॒णु॒थ॒ । अ॒प: । ओष॑धी: । शि॒वा: । यत् । एज॑थ । म॒रु॒त॒: । रु॒क्म॒ऽव॒क्ष॒स॒: । ऊर्ज॑म् । च॒ । तत्र॑ । सु॒ऽम॒तिम् । च॒ । पि॒न्व॒त॒ । यत्र॑ । न॒र॒: । म॒रु॒त॒: । सि॒ञ्चथ॑ । मधु॑॥२२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पयस्वतीः कृणुथाप ओषधीः शिवा यदेजथा मरुतो रुक्मवक्षसः। ऊर्जं च तत्र सुमतिं च पिन्वत यत्रा नरो मरुतः सिञ्चथा मधु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पयस्वती: । कृणुथ । अप: । ओषधी: । शिवा: । यत् । एजथ । मरुत: । रुक्मऽवक्षस: । ऊर्जम् । च । तत्र । सुऽमतिम् । च । पिन्वत । यत्र । नर: । मरुत: । सिञ्चथ । मधु॥२२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 22; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (रुक्मवक्षसः) हे तेज [बिजुली] को हृदय में रखनेवाले (मरुतः) वायु के वेगो ! (यत्) जब (एजथ) तुम चलते हो, (अपः) जल और (ओषधीः) अन्न आदि ओषधियों को (पयस्वतीः) रसवाली और (शिवाः) कल्याणकारी (कृणुथ) तुम करते हो। (च) और (तत्र) वहाँ (ऊर्जम्) बल देनेवाला अन्न (च) और (सुमतिम्) उत्तम बुद्धि (पिन्वत) बरसाते हो, (यत्र) जहाँ पर (नरः) हे नायक (मरुतः) वायुगणो ! (मधु) जल (सिञ्चथ) सींचते हो ॥२॥

    भावार्थ - जिस प्रकार वायु बिजुली से युक्त मेघ से मिलकर बरसा करता है और अन्न आदि पदार्थ उत्पन्न करता है, उसी प्रकार मनुष्यों को विद्या आदि उत्तम गुण प्राप्त करके आनन्दित होना चाहिये ॥२॥

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