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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 68

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 68/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - सविता, आदित्यगणः, रुद्रगणः, वसुगणः छन्दः - चतुष्पदा पुरोविराडतिशाक्वरगर्भा जगती सूक्तम् - वपन सूक्त

    आयम॑गन्त्सवि॒ता क्षु॒रेणो॒ष्णेन॑ वाय उद॒केनेहि॑। आ॑दि॒त्या रु॒द्रा वस॑व उन्दन्तु॒ सचे॑तसः॒ सोम॑स्य॒ राज्ञो॑ वपत॒ प्रचे॑तसः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । अ॒यम् । अ॒ग॒न् । स॒वि॒ता । क्षु॒रेण॑ । उ॒ष्णेन॑ । वा॒यो॒ इति॑ ।उ॒द॒केन॑ । आ । इ॒हि॒ । आ॒दि॒त्या:। रु॒द्रा: । वस॑व: । उ॒न्द॒न्तु॒ । सऽचे॑तस:। सोम॑स्य । राज्ञ॑: । व॒प॒त॒ । प्रऽचे॑तस: ॥६८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आयमगन्त्सविता क्षुरेणोष्णेन वाय उदकेनेहि। आदित्या रुद्रा वसव उन्दन्तु सचेतसः सोमस्य राज्ञो वपत प्रचेतसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । अयम् । अगन् । सविता । क्षुरेण । उष्णेन । वायो इति ।उदकेन । आ । इहि । आदित्या:। रुद्रा: । वसव: । उन्दन्तु । सऽचेतस:। सोमस्य । राज्ञ: । वपत । प्रऽचेतस: ॥६८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 68; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (अयम्) यह (सविता) काम का चलानेवाला फुरतीला नापित (क्षुरेण) छुरा सहित (आ अगन्) आया है, (वायो) हे शीघ्रगामी पुरुष ! (उष्णेन) तप्त [तत्ते] (उदकेन) जलसहित (आ इहि) तू आ। (आदित्याः) प्रकाशमान, (रुद्राः) ज्ञानवान्, (वसवः) श्रेष्ठ पुरुष आप (सचेतसः) एकचित्त होकर [बालक के केश] (उन्दन्तु) भिगोवें, (प्रचेतसः) प्रकृष्ट ज्ञानवाले पुरुषो ! तुम (सोमस्य) शान्तस्वभाव (राज्ञः) तेजस्वी बालक का (वपत=वपयत) मुण्डन कराओ ॥१॥

    भावार्थ - गृहस्थ प्रवीण शुद्ध नापित को बुलाकर गुनगुने जल से मुण्डन करावें और सब बड़े-बड़े विद्वान् पुरुष उत्सव में आकर यथोचित सम्मति देवें ॥१॥ इस सूक्त के तीनों मन्त्र श्रीमद् दयानन्दकृत संस्कारविधि चूडाकर्मसंस्कार में लिखे हैं ॥१॥

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