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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 69

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 69/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - बृहस्पतिः, अश्विनौ छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वर्चस् प्राप्ति सूक्त

    गि॒राव॑र॒गरा॑टेषु॒ हिर॑ण्ये॒ गोषु॒ यद्यशः॑। सुरा॑यां सि॒च्यमा॑नायां की॒लाले॒ मधु॒ तन्मयि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गि॒रौ । अ॒र॒गरा॑टेषु । हिर॑ण्ये । गोषु॑ । यत् ।यश॑: । सुरा॑याम् । सि॒च्यमा॑नायाम् । की॒लाले॑ । मधु॑ । तत् । मयि॑ ॥६९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गिरावरगराटेषु हिरण्ये गोषु यद्यशः। सुरायां सिच्यमानायां कीलाले मधु तन्मयि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गिरौ । अरगराटेषु । हिरण्ये । गोषु । यत् ।यश: । सुरायाम् । सिच्यमानायाम् । कीलाले । मधु । तत् । मयि ॥६९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 69; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (गिरौ) उपदेश करनेवाले संन्यासी में, (अरगराटेषु) ज्ञान के उपदेशकों में विचरनेवालों [ब्रह्मचारी आदिकों] के बीच, (हिरण्ये) सुवर्ण में और (गोषु) विद्याओं में (यत्) जो (यशः) यश है। और (सिच्यमानायाम् सुरायाम्) बहते हुए जल [अथवा बढ़ते हुए ऐश्वर्य] में और (कीलाले) अन्न में (मधु) जो मीठापन है, (तत्) वह (मयि) मुझ में होवे ॥१॥

    भावार्थ - मनुष्य विद्वानों के सत्सङ्ग से विद्या आदि प्राप्त करके अपना ऐश्वर्य और स्वास्थ्य स्थिर रखकर यश पावें ॥१॥

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