Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 5

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 5/ मन्त्र 5
    सूक्त - अथर्वा देवता - आत्मा छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - आत्मा सूक्त

    मु॒ग्धा दे॒वा उ॒त शुनाऽय॑जन्तो॒त गोरङ्गैः॑ पुरु॒धाऽय॑जन्त। य इ॒मं य॒ज्ञं मन॑सा चि॒केत॒ प्र णो॑ वोच॒स्तमि॒हेह ब्र॑वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मु॒ग्धा: । दे॒वा: । उ॒त । शुना॑ । अय॑जन्त । उ॒त । गो: । अङ्गै॑: । पु॒रु॒ऽधा । अ॒य॒ज॒न्त॒ । य: । इ॒मम् । य॒ज्ञम् । मन॑सा । चि॒केत॑ । प्र । न॒: । वो॒च॒:। तम् । इ॒ह । इ॒ह । ब्र॒व॒: ॥५.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मुग्धा देवा उत शुनाऽयजन्तोत गोरङ्गैः पुरुधाऽयजन्त। य इमं यज्ञं मनसा चिकेत प्र णो वोचस्तमिहेह ब्रवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मुग्धा: । देवा: । उत । शुना । अयजन्त । उत । गो: । अङ्गै: । पुरुऽधा । अयजन्त । य: । इमम् । यज्ञम् । मनसा । चिकेत । प्र । न: । वोच:। तम् । इह । इह । ब्रव: ॥५.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 5; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    (देवाः) विद्वान् लोग [ईश्वर की सीमा के विषय में] (मुग्धाः) मूढ़ होकर (उत) भी (शुना) ज्ञान से [परमात्मा को] (अयजन्त) मिले हैं, (उत) और (गोः) वेदवाणी के (अङ्गैः) अङ्गों से [उसे] (पुरुधा) विविध प्रकार से (अयजन्त) पूजा है। (यः) जिस आपने (इमम् यज्ञम्) इस पूजनीय परमेश्वर को (मनसा) विज्ञान के साथ (चिकेत) जाना है, और जिस तूने (नः) हमें (प्र) अच्छे प्रकार (वोचः) उपदेश किया है, सो तू (तम्) उस परमेश्वर का (इह इह) यहाँ पर ही (ब्रवः) उपदेश कर ॥५॥

    भावार्थ - ऋषि मुनि लोग असीम, अनादि, अनन्त, परमेश्वर को सब से बलिष्ठ जान कर ही विज्ञानपूर्वक आगे बढ़ते और उसका उपदेश करके संसार को आगे बढ़ाते हैं ॥५॥ इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध आ चुका है-अ० ७।२।१ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top