Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 49

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 49/ मन्त्र 2
    सूक्त - गोपथः, भरद्वाजः देवता - रात्रिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - रात्रि सूक्त

    अति॒ विश्वा॑न्यरुहद्गम्भी॒रो वर्षि॑ष्ठमरुहन्त॒ श्रवि॑ष्ठाः। उ॑श॒ती रात्र्यनु॒ सा भ॑द्रा॒भि ति॑ष्ठते मि॒त्र इ॑व स्व॒धाभिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अति॑। विश्वा॑नि। अ॒रु॒ह॒त्। ग॒म्भी॒रः। वर्षि॑ष्ठम्। अ॒रु॒ह॒न्त॒। श्रवि॑ष्ठाः। उ॒श॒ती। रात्री॑। अनु॑। सा। भ॒द्रा। अ॒भि। ति॒ष्ठ॒ते॒। मि॒त्रःऽइ॑व। स्व॒धाभिः॑ ॥४९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अति विश्वान्यरुहद्गम्भीरो वर्षिष्ठमरुहन्त श्रविष्ठाः। उशती रात्र्यनु सा भद्राभि तिष्ठते मित्र इव स्वधाभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अति। विश्वानि। अरुहत्। गम्भीरः। वर्षिष्ठम्। अरुहन्त। श्रविष्ठाः। उशती। रात्री। अनु। सा। भद्रा। अभि। तिष्ठते। मित्रःऽइव। स्वधाभिः ॥४९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 49; मन्त्र » 2

    Meaning -
    Profound darkness covers all things of the day’s world. Greatest stars ascend on top of the deep and generous vault of heaven. Noble night of exciting splendour abides by its own time like a friend with her own blessed powers of peace and restfulness.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top