अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 9/ मन्त्र 4
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - वास्तोष्पतिः
छन्दः - दैवी जगती
सूक्तम् - आत्मा सूक्त
अ॒न्तरि॑क्षाय॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒न्तरि॑क्षाय । स्वाहा॑ ॥९.४॥
स्वर रहित मन्त्र
अन्तरिक्षाय स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठअन्तरिक्षाय । स्वाहा ॥९.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 9; मन्त्र » 4
Subject - Well Being of Body and Soul
Meaning -
Homage to the middle region for health and broadness of mind in truth of thought, word and deed in faith.