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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 21
    ऋषिः - याज्ञवल्क्यः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    रेव॑ती॒ रम॑ध्वम॒स्मिन् योना॑व॒स्मिन् गो॒ष्ठेऽस्मिँल्लो॒केऽस्मिन् क्षये॑। इ॒हैव स्त॒ माप॑गात॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रेव॑तीः। रम॑ध्वम्। अ॒स्मिन्। योनौ॑। अ॒स्मिन्। गो॒ष्ठे। गो॒स्थ इति॑ गो॒ऽस्थे॑। अ॒स्मिन्। लो॒के। अ॒स्मिन्। क्षये॑। इ॒ह। ए॒व। स्त॒। मा। अप॑। गा॒त॒ ॥२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रेवती रमध्वमस्मिन्योनावस्मिन्गोष्ठे स्मिँल्लोके स्मिन्क्षये । इहैव स्त मापगात ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    रेवतीः। रमध्वम्। अस्मिन्। योनौ। अस्मिन्। गोष्ठे। गोस्थ इति गोऽस्थे। अस्मिन्। लोके। अस्मिन्। क्षये। इह। एव। स्त। मा। अप। गात॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 21
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    भावार्थ - जेथे विद्वानांचा निवास असतो. तेथील प्रजा ज्ञान व उत्तम शिक्षण ग्रहण करते व श्रीमंत होते आणि सुखी बनते त्यामुळै माणसांनी ही इच्छा बाळगली पाहिजे. की आपण सतत विद्वानांच्या सान्निध्यात असावे, त्यांच्यापासून दूर जाता कामा नये.

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