Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 41

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 41/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - तपः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - राष्ट्रबल सूक्त

    भ॒द्रमि॒च्छन्त॒ ऋष॑यः स्व॒र्विद॒स्तपो॑ दी॒क्षामु॑प॒निषे॑दु॒रग्रे॑। ततो॑ रा॒ष्ट्रं बल॒मोज॑श्च जा॒तं तद॑स्मै दे॒वा उ॑प॒संन॑मन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भ॒द्रम्। इ॒च्छन्तः॑। ऋष॑यः। स्वः॒ऽविदः॑। तपः॑। दी॒क्षाम्। उ॒प॒ऽनिसेदुः॑। अग्रे॑। ततः॑। रा॒ष्ट्र॒म्। बल॑म्। ओजः॑। च॒। जा॒तम्। तत्। अ॒स्मै॒। दे॒वाः। उ॒प॒ऽसंन॑मन्तु ॥४१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भद्रमिच्छन्त ऋषयः स्वर्विदस्तपो दीक्षामुपनिषेदुरग्रे। ततो राष्ट्रं बलमोजश्च जातं तदस्मै देवा उपसंनमन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भद्रम्। इच्छन्तः। ऋषयः। स्वःऽविदः। तपः। दीक्षाम्। उपऽनिसेदुः। अग्रे। ततः। राष्ट्रम्। बलम्। ओजः। च। जातम्। तत्। अस्मै। देवाः। उपऽसंनमन्तु ॥४१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 41; मन्त्र » 1

    Translation -
    Desirous of weal, attainers of light, the seers began austerity and consecration in ancient times. Therefrom the kingdom, strength and vigour was born. May the bounties of Nature bring all that under control of this person.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top