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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 44

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 44/ मन्त्र 7
    सूक्त - भृगुः देवता - आञ्जनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - भैषज्य सूक्त

    वी॒दं मध्य॒मवा॑सृपद्रक्षो॒हामी॑व॒चात॑नः। अमी॑वाः॒ सर्वा॑श्चा॒तय॑न्ना॒शय॑दभि॒भा इ॒तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि। इ॒दम्। मध्य॑म्। अव॑। अ॒सृ॒प॒त्। र॒क्षः॒ऽहा। अ॒मी॒व॒ऽचात॑नः। अमी॑वाः। सर्वाः॑। चा॒तय॑त्। ना॒शय॑त्। अ॒भि॒ऽभाः। इ॒तः ॥४४.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वीदं मध्यमवासृपद्रक्षोहामीवचातनः। अमीवाः सर्वाश्चातयन्नाशयदभिभा इतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वि। इदम्। मध्यम्। अव। असृपत्। रक्षःऽहा। अमीवऽचातनः। अमीवाः। सर्वाः। चातयत्। नाशयत्। अभिऽभाः। इतः ॥४४.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 44; मन्त्र » 7

    Translation -
    Killer of harmful germs and expeller of disease, this (ointment) has come down in our midst, driving away all the diseases and making impending calamities vanish.

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