अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 49/ मन्त्र 3
सूक्त - गोपथः, भरद्वाजः
देवता - रात्रिः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - रात्रि सूक्त
वर्ये॒ वन्दे॒ सुभ॑गे॒ सुजा॑त॒ आज॑ग॒न्रात्रि॑ सु॒मना॑ इ॒ह स्या॑म्। अ॒स्मांस्त्रा॑यस्व॒ नर्या॑णि जा॒ता अथो॒ यानि॒ गव्या॑नि पु॒ष्ठ्या ॥
स्वर सहित पद पाठवर्ये॑। वन्दे॑। सुऽभ॑गे। सु॒ऽजा॑ते। आ। अ॒ज॒ग॒न्। रात्रि॑। सु॒ऽमनाः॑। इ॒ह। स्या॒म्। अ॒स्मान्। त्रा॒य॒स्व॒। नर्या॑णि। जा॒ता। अथो॒ इति॑। यानि॑। गव्या॑नि। पु॒ष्ट्या ॥४९.३॥
स्वर रहित मन्त्र
वर्ये वन्दे सुभगे सुजात आजगन्रात्रि सुमना इह स्याम्। अस्मांस्त्रायस्व नर्याणि जाता अथो यानि गव्यानि पुष्ठ्या ॥
स्वर रहित पद पाठवर्ये। वन्दे। सुऽभगे। सुऽजाते। आ। अजगन्। रात्रि। सुऽमनाः। इह। स्याम्। अस्मान्। त्रायस्व। नर्याणि। जाता। अथो इति। यानि। गव्यानि। पुष्ट्या ॥४९.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 49; मन्त्र » 3
Translation -
O desirable deserving worship blissful. night-born might you have come. May you stay here with friendly favour in you protect us, O well born. and also the dary prodnets. which are beneficial for men with their nourishment
Comments / Notes -
Text is not clear in the book. If someone has a clearer copy, please edit this translation