अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 49/ मन्त्र 1
सूक्त - गोपथः, भरद्वाजः
देवता - रात्रिः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - रात्रि सूक्त
इ॑षि॒रा योषा॑ युव॒तिर्दमू॑ना॒ रात्री॑ दे॒वस्य॑ सवि॒तुर्भग॑स्य। अ॑श्वक्ष॒भा सु॒हवा॒ संभृ॑तश्री॒रा प॑प्रौ॒ द्यावा॑पृथि॒वी म॑हि॒त्वा ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒षि॒रा। योषा॑। यु॒व॒तिः। दमू॑ना। रात्री॑। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। भग॑स्य। अ॒श्व॒ऽक्ष॒भा। सु॒ऽहवा॑। सम्ऽभृ॑तश्रीः। आ। प॒प्रौ॒। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। म॒हि॒ऽत्वा ॥४९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
इषिरा योषा युवतिर्दमूना रात्री देवस्य सवितुर्भगस्य। अश्वक्षभा सुहवा संभृतश्रीरा पप्रौ द्यावापृथिवी महित्वा ॥
स्वर रहित पद पाठइषिरा। योषा। युवतिः। दमूना। रात्री। देवस्य। सवितुः। भगस्य। अश्वऽक्षभा। सुऽहवा। सम्ऽभृतश्रीः। आ। पप्रौ। द्यावापृथिवी इति। महिऽत्वा ॥४९.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 49; मन्त्र » 1
Subject - Night : Praises and Prayer
Translation -
Covetablé, vouthful maiden. night. dear to the impeller ___ of the fortune, all encompassing. “easy Ce cee ne accumulating giory. nee elec the heaven md carb eu grandeur.
Comments / Notes -
Text is not clear in the book. If someone has a clearer copy, please edit this translation