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अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 60/ मन्त्र 2
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - मन्त्रोक्ताः, वाक्
छन्दः - ककुम्मतीपुरउष्णिक्
सूक्तम् - अङ्ग सूक्त
ऊ॒र्वोरोजो॒ जङ्घ॑योर्ज॒वः पाद॑योः। प्र॑ति॒ष्ठा अरि॑ष्टानि मे॒ सर्वा॒त्मानि॑भृष्टः ॥
स्वर सहित पद पाठऊ॒र्वोः। ओजः॑। जङ्घ॑योः। ज॒वः। पाद॑योः। प्र॒ति॒ऽस्था। अरि॑ष्टानि। मे॒। सर्वा॑। आ॒त्मा। अनि॑ऽभृष्टः ॥६०.२॥
स्वर रहित मन्त्र
ऊर्वोरोजो जङ्घयोर्जवः पादयोः। प्रतिष्ठा अरिष्टानि मे सर्वात्मानिभृष्टः ॥
स्वर रहित पद पाठऊर्वोः। ओजः। जङ्घयोः। जवः। पादयोः। प्रतिऽस्था। अरिष्टानि। मे। सर्वा। आत्मा। अनिऽभृष्टः ॥६०.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 60; मन्त्र » 2
Translation -
(May there be) vigour in my two thighs, speed in my two legs, steadiness in my two feet all my organs unimpaired and my-self ever unsubdued.