ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 94/ मन्त्र 1
ऋषि: - बिन्दुः पूतदक्षो वा
देवता - मरूतः
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
गौर्ध॑यति म॒रुतां॑ श्रव॒स्युर्मा॒ता म॒घोना॑म् । यु॒क्ता वह्नी॒ रथा॑नाम् ॥
स्वर सहित पद पाठगौः । ध॒य॒ति॒ । म॒रुता॑म् । श्र॒व॒स्युः । म॒ता । म॒घोना॑म् । यु॒क्ता । वह्निः॑ । रथा॑नाम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
गौर्धयति मरुतां श्रवस्युर्माता मघोनाम् । युक्ता वह्नी रथानाम् ॥
स्वर रहित पद पाठगौः । धयति । मरुताम् । श्रवस्युः । मता । मघोनाम् । युक्ता । वह्निः । रथानाम् ॥ ८.९४.१
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 94; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
पदार्थ -
(मघोनाम्) ऐश्वर्य सम्पन्न (मरुताम्) व्यक्तियों की माता--माता के तुल्य निर्माण करने वाली, (रथानाम्) रमणीय तथा सुखदायी पदार्थों को (वह्नी) वहन करने वाली एवं (युक्ता) उनसे संयुक्त (गौः) पृथिवी (श्रवस्युः) उन्हें अन्न, बल, धन व कीर्ति से युक्त बनाने का संकल्प युक्त हुई (धयति) पालन करती है॥१॥
भावार्थ - धरती व्यक्तियों की माता के तुल्य है। इस पर तथा इसमें विभिन्न रमणीय व सुखदायी पदार्थ हैं। इनके द्वारा यह मनुष्यों का निर्माण करती है। यह माता मनुष्य को अन्न आदि से न केवल बलवान् और विविध पदार्थों के द्वारा ऐश्वर्यवान् ही बनाती है, अपितु मानव को इन पदार्थों के समुचित प्रयोग से विश्व में यशस्वी भी बनाती है॥१॥
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