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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 10

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 10/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - शान्ति सूक्त

    शं न॑ इन्द्रा॒ग्नी भ॑वता॒मवो॑भिः॒ शं न॑ इन्द्रा॒वरु॑णा रा॒तह॑व्या। शमि॑न्द्रा॒सोमा॑ सुवि॒ताय॒ शं योः शं न॒ इन्द्रा॑पू॒षणा॒ वाज॑सातौ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम्। नः॒। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। भ॒व॒ता॒म्। अवः॑ऽभिः। शम्। नः॒। इन्द्रा॒वरु॑णा। रा॒तऽह॑व्या। शम्। इन्द्रा॒सोमा॑। सु॑वि॒ताय॑। शम्। योः। शम्। नः॒। इन्द्रा॑पू॒षणा॑। वाज॑ऽसातौ ॥१०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं न इन्द्राग्नी भवतामवोभिः शं न इन्द्रावरुणा रातहव्या। शमिन्द्रासोमा सुविताय शं योः शं न इन्द्रापूषणा वाजसातौ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। नः। इन्द्राग्नी इति। भवताम्। अवःऽभिः। शम्। नः। इन्द्रावरुणा। रातऽहव्या। शम्। इन्द्रासोमा। सुविताय। शम्। योः। शम्। नः। इन्द्रापूषणा। वाजऽसातौ ॥१०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 10; मन्त्र » 1

    टिप्पणीः - यह सूक्त, मन्त्र १-१० [मन्त्र ८ कुछ भेद से] ऋग्वेद में है−७।३५।१-१०, और महर्षिदयानन्दकृत भाष्य में भी व्याख्यात हैं, यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है−३६।११ ॥ १−(शम्) सुखकारकौ (नः) अस्मभ्यम् (इन्द्राग्नी) विद्युत्पावकौ (भवताम्) (अवोभिः) रक्षासाधनैः (शम्) (नः) (इन्द्रावरुणा) विद्युज्जले (रातहव्या) रातानि दत्तानि हव्यानि ग्राह्याणि वस्तूनि याभ्यां तौ (शम्) सुखकरौ (इन्द्रासोमा) विद्युच्चन्द्रौ (सुविताय) पिशेः किच्च। उ० ३।९५। षू ऐश्वर्ये-इतन् स च कित्। ऐश्वर्याय (शम्) शमु उपशमे-विच्। रोगनाशकौ (योः) अ० १।६।१। अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते। पा० ३।२।७५। इति यु मिश्रणामिश्रणयोः-विच्, सकारश्छान्दसः, यद्वा। यु−डोसि। शंयोः शमनं च रोगाणां यावनं च भयानाम्-निरु० ४।२१। भयनिवारकौ (वाजसातौ) षण संभक्तौ−क्तिन्। पराक्रमस्य लाभे सङ्ग्रामे वा ॥

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