Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 4/ मन्त्र 3
सूक्त - अथर्वाङ्गिराः
देवता - अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - आकूति सूक्त
आकू॑त्या नो बृहस्पत॒ आकू॑त्या न॒ उपा ग॑हि। अथो॒ भग॑स्य नो धे॒ह्यथो॑ नः सु॒हवो॑ भव ॥
स्वर सहित पद पाठआऽकू॑त्या। नः॒। बृ॒ह॒स्प॒ते॒। आऽकू॑त्या। नः॒।उप॑। आ। ग॒हि॒। अथो॒ इति॑। भग॑स्य। नः॒। धे॒हि॒। अथो॒ इति॑।नः॒। सु॒ऽहवः॑। भ॒व॒ ॥४.३॥
स्वर रहित मन्त्र
आकूत्या नो बृहस्पत आकूत्या न उपा गहि। अथो भगस्य नो धेह्यथो नः सुहवो भव ॥
स्वर रहित पद पाठआऽकूत्या। नः। बृहस्पते। आऽकूत्या। नः।उप। आ। गहि। अथो इति। भगस्य। नः। धेहि। अथो इति।नः। सुऽहवः। भव ॥४.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
सूचना -
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः - ३−(आकूत्या) म० २। संकल्पशक्त्या (नः) अस्मान् (बृहस्पते) बृहतीनां विद्यानां स्वामिन् पुरुष (आकूत्या) (नः) अस्मान् (उप) समीपे (आ) आगत्य (गहि) गच्छ। प्राप्नुहि (अथो) अपि च (भगस्य) ऐश्वर्यस्य (नः) अस्मभ्यम् (धेहि) दानं कुरु, (अथो) अपि च (नः) अस्मभ्यम् (सुहवः) सुष्ठु ह्वातव्यः (भव) ॥
इस भाष्य को एडिट करें