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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वाङ्गिराः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - आकूति सूक्त
    38

    आकू॑त्या नो बृहस्पत॒ आकू॑त्या न॒ उपा ग॑हि। अथो॒ भग॑स्य नो धे॒ह्यथो॑ नः सु॒हवो॑ भव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आऽकू॑त्या। नः॒। बृ॒ह॒स्प॒ते॒। आऽकू॑त्या। नः॒।उप॑। आ। ग॒हि॒। अथो॒ इति॑। भग॑स्य। नः॒। धे॒हि॒। अथो॒ इति॑।नः॒। सु॒ऽहवः॑। भ॒व॒ ॥४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आकूत्या नो बृहस्पत आकूत्या न उपा गहि। अथो भगस्य नो धेह्यथो नः सुहवो भव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आऽकूत्या। नः। बृहस्पते। आऽकूत्या। नः।उप। आ। गहि। अथो इति। भगस्य। नः। धेहि। अथो इति।नः। सुऽहवः। भव ॥४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    बुद्धि बढ़ाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (बृहस्पते) हे बृहस्पति ! [बड़ी विद्याओं के स्वामी पुरुष] (आकूत्या) संकल्प शक्ति के साथ (नः) हमको, (आकूत्या) संकल्प शक्ति के साथ (नः) हम को (उप) समीप से (आ) आकर (गहि) प्राप्त हो। (अथो) और (नः) हमें (भगस्य) ऐश्वर्य का (धेहि) दान कर, (अथो) और भी (नः) हमारे लिये (सुहवः) सहज में पुकारने योग्य (भव) हो ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य बड़े-बड़े विद्वानों से शिक्षा पाकर शुभ कर्म के लिये दृढ़ संकल्प कर के सहज में सफलता प्राप्त करे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(आकूत्या) म० २। संकल्पशक्त्या (नः) अस्मान् (बृहस्पते) बृहतीनां विद्यानां स्वामिन् पुरुष (आकूत्या) (नः) अस्मान् (उप) समीपे (आ) आगत्य (गहि) गच्छ। प्राप्नुहि (अथो) अपि च (भगस्य) ऐश्वर्यस्य (नः) अस्मभ्यम् (धेहि) दानं कुरु, (अथो) अपि च (नः) अस्मभ्यम् (सुहवः) सुष्ठु ह्वातव्यः (भव) ॥

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    विषय

    अभ्युदय व निःश्रेयस' का साधक संकल्प

    पदार्थ

    १. हे (बृहस्पते) = वेदज्ञान के स्वामिन् प्रभो! [ब्रह्मणस्पते] आप (आकूत्या) = संकल्पशक्ति के साथ (न:) = हमें (उप आगहि) = समीपता से प्राप्त होइए। अवश्य ही इस (आकूत्या न:) = संकल्पशक्ति पदार्थों को के साथ हमें प्राप्त होइए। आप हमें संकल्पशक्ति को अवश्य ही प्राप्त कराइए । २. (अथ) = अब संकल्पशक्ति को प्राप्त कराने के द्वारा अवश्य ही (नः भगस्य धेहि) = हमारे लिए ऐश्वर्य को [सौभाग्य को] धारण कोजिए। हम संकल्प के द्वारा ऐश्वर्यसम्पन्न बने। (अथ उ) = और निश्चय से (आपन:) = हमारे लिए (सुहव:) = सुगमता से आराधन के योग्य (भव) = होइए। इस संकल्प के द्वारा हम आपको प्राप्त करनेवाले बनें।

    भावार्थ

    प्रभु हमें संकल्पशक्ति दें। इस संकल्पशक्ति से हम ऐश्वर्य-सिद्ध करते हुए प्रभु को प्राप्त करनेवाले बनें। ऐश्वर्य ही अभ्युदय' है, प्रभु-प्राप्ति व निःश्रेयस-इन दोनों को प्रास करानेवाला यह संकल्प है।

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    भाषार्थ

    (बृहस्पते) हे महती शक्ति के स्वामी! (आकूत्या) हमारी दृढ़ संकल्पशक्ति के कारण (नः) हमें (उपागहि) आप प्राप्त हूजिए। (आकूत्या) हमारी दृढ़ संकल्पशक्ति के कारण (नः) आप हमें (उपागहि) अवश्य प्राप्त हूजिए। (अथ उ) तदन्तर (नः) हमें (भगस्य धेहि) भग प्रदान कीजिये। (अथ उ) और (नः) हमारे लिये आप (सुहवः) सुगमता से आह्वान-योग्य (भव) हो जाइये। [भगस्य=देखो—मन्त्र १९.४.२।]

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    विषय

    वाणी और आकूति का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (बृहस्पते) बृहती वेदवाणी के स्वामिन् ! आप (आकूत्या) अकूति, वाक्य के तात्पर्य रूप उच्चारण करने योग्य वाणी के मर्म या प्रथम उत्पन्न, मूल बुद्धि रुप से (नः) हमें (उप आगहि) प्राप्त हो। (आकूत्या नः उप आगहि) ‘आकृति’ रूप से आप हमे प्राप्त हो। (अथो) और (नः) हमें (भगस्य) ज्ञानरूप ऐश्वर्य (धेहि) प्रदान कर। (अथो) और (नः) हमारे लिये (सुहवः) उत्तम राति से स्तुतियोग्य, (भव) हो।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘देहि’ इति सायणाभिमतः। (य०) ‘सुमगां भव’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वाङ्गिरा ऋषिः। अग्निरुत मन्त्रोक्ता देवता। १ पञ्चपदा विराड् अतिजगती, २ जगती ३,४ त्रिष्टुभौ। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Akuti

    Meaning

    O Brhaspati, lord of the expansive universe and infinite intelligence, come and bless us with intelligence and will, close at hand with thought and determination. And give us plenty of honour and prosperity, and pray be responsive at the call of our invocation and adoration.

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    Translation

    With determination, O Lord supreme, with determination come to us. Then, may you grant us fortune; and may you be quick to hear our invocation.

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    Translation

    Divinity (the master of Vedic knowledge) please, you know us through our intention ‘and you come nearer to US through our intention. O God, grace me with fortune and become glorified by us.

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    Translation

    O Lord of Vedic learning, come to us with the set purpose and strong will-power. Then shower on us the fortune of knowledge and be prompt to hear our call.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(आकूत्या) म० २। संकल्पशक्त्या (नः) अस्मान् (बृहस्पते) बृहतीनां विद्यानां स्वामिन् पुरुष (आकूत्या) (नः) अस्मान् (उप) समीपे (आ) आगत्य (गहि) गच्छ। प्राप्नुहि (अथो) अपि च (भगस्य) ऐश्वर्यस्य (नः) अस्मभ्यम् (धेहि) दानं कुरु, (अथो) अपि च (नः) अस्मभ्यम् (सुहवः) सुष्ठु ह्वातव्यः (भव) ॥

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