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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 37 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 37/ मन्त्र 2
सा मा॑ स॒त्योक्ति॒: परि॑ पातु वि॒श्वतो॒ द्यावा॑ च॒ यत्र॑ त॒तन॒न्नहा॑नि च । विश्व॑म॒न्यन्नि वि॑शते॒ यदेज॑ति वि॒श्वाहापो॑ वि॒श्वाहोदे॑ति॒ सूर्य॑: ॥
स्वर सहित पद पाठसा । मा॒ । स॒त्यऽउ॑क्तिः । परि॑ । पा॒तु॒ । वि॒श्वतः॑ । द्यावा॑ । च॒ । यत्र॑ । त॒तन॑न् । अहा॑नि । च॒ । विश्व॑म् । अ॒न्यत् । नि । वि॒श॒ते॒ । यत् । एज॑ति । वि॒श्वाहा॑ । आपः॑ । वि॒श्वाहा॑ । उत् । ए॒ति॒ । सूर्यः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सा मा सत्योक्ति: परि पातु विश्वतो द्यावा च यत्र ततनन्नहानि च । विश्वमन्यन्नि विशते यदेजति विश्वाहापो विश्वाहोदेति सूर्य: ॥
स्वर रहित पद पाठसा । मा । सत्यऽउक्तिः । परि । पातु । विश्वतः । द्यावा । च । यत्र । ततनन् । अहानि । च । विश्वम् । अन्यत् । नि । विशते । यत् । एजति । विश्वाहा । आपः । विश्वाहा । उत् । एति । सूर्यः ॥ १०.३७.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 37; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
व्याख्याः शृङ्गी ऋषि कृष्ण दत्त जी महाराज -
व्याख्याः शृङ्गी मुनि कृष्ण दत्त जी महाराज
सत्य को जान
जीते रहो, देखो, मुनिवरों! अभी अभी हमारा पर्ययण समय समाप्त हुआ। हम तुम्हारे समक्ष, वेदो का मनोहर गान गा रहे थे। ये भी तुम्हें प्रतीत हो गया होगा, कि जिन वेद मन्त्रों का, अभी अभी तुम्हारे समक्ष हमने पाठ किया, उन वेद मन्त्रों में कितनी निधि हैं, इनमें परमात्मा का कितना ज्ञान विज्ञान छिपा हुआ है, जिस परमात्मा ने बेटा! हमारे लिए पौने दो अरब वर्ष पूर्व सब योजना नियुक्त की, उन योजनाओं को पाना तो बेटा! दूर, उन का उच्चारण करना भी हमारी बुद्धि से परे है। उस विधाता ने इतना महान, अलौकिक इस संसार को बनाया है कि इसका हम वर्णन भी नही कर सकतें।
मुनिवरों! वेदमन्त्र में तो ऐसा कहा जा रहा था, कि मानव जीवन को उच्च बनाने के लिए बहुत ऊँची योजनाओं की आवश्यकता है, आज मानव यह न मान बैठे कि हमारी कोई योजना नही है। बेटा! मानव के लिए सत्य को जानना ही मानव का सबसे बड़ा धर्म है।
अरे, मानव यह भी विचारों, कि परमात्मा के नियम, वे यौगिक नियम बुद्धि से परे माने जाते हैं। इसीलिए हे मानव! तू यह न मान बैठ, कि जो तेरी बुद्धि में नही आया, वह असत्य है, कदापि नहीं, इसके लिए तुम अनुभव करो। योगाभ्यास करो। जीवन को उच्च बनाओ, आत्मा रूपी दर्पण पर आए, नाना प्रकार के मलों को अच्छी तरह नष्ट करो। उसके पश्चात तुम्हें सब कुछ अनुभव हो जाएगा, फिर तुम सभी कुछ जान जाओगे, इसलिए बेटा! मानव का यह सबसे बड़ा कर्म देखो, परम तत्व माना जाता है, सत्ता को विचारने के लिए, मुनिवरों! अपने को विचारा जाता है, कि मैं भी सत्य हूँ या नहीं? अरे, जब तक हम स्वयं सत्य नहीं बनेंगें, तब तक हम किसी सत्ता का, किसी प्रकार का निर्णय नही कर सकतें।
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