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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 49 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 49/ मन्त्र 10
    ऋषिः - ऋजिश्वाः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    भुव॑नस्य पि॒तरं॑ गी॒र्भिरा॒भी रु॒द्रं दिवा॑ व॒र्धया॑ रु॒द्रम॒क्तौ। बृ॒हन्त॑मृ॒ष्वम॒जरं॑ सुषु॒म्नमृध॑ग्घुवेम क॒विने॑षि॒तासः॑ ॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भुव॑नस्य । पि॒तर॑म् । गीः॒ऽभिः । आ॒भिः । रु॒द्रम् । दिवा॑ । व॒र्धय॑ । रु॒द्रम् । अ॒क्तौ । बृ॒हन्त॑म् । ऋ॒ष्वम् । अ॒जर॑म् । सु॒ऽसु॒म्नम् । ऋध॑क् । हु॒वे॒म॒ । क॒विना॑ । इ॒षि॒तासः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भुवनस्य पितरं गीर्भिराभी रुद्रं दिवा वर्धया रुद्रमक्तौ। बृहन्तमृष्वमजरं सुषुम्नमृधग्घुवेम कविनेषितासः ॥१०॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भुवनस्य। पितरम्। गीःऽभिः। आभिः। रुद्रम्। दिवा। वर्धय। रुद्रम्। अक्तौ। बृहन्तम्। ऋष्वम्। अजरम्। सुऽसुम्नम्। ऋधक्। हुवेम। कविना। इषितासः ॥१०॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 49; मन्त्र » 10
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 5

    व्याख्याः शृङ्गी ऋषि कृष्ण दत्त जी महाराज -

    व्याख्याः शृङ्गी ऋषि कृष्ण दत्त जी महाराज-रुद्र

    रुद्र याग राजा करता है।

    हे मृत्यु! तेरे ही आंगन में मानो यह सर्वत्र ब्रह्माण्ड में, तू व्याप रही है और यह मानो तू सबको रूला देती है। रुद्र बन करके, वह रुद्र आभा में रत्त रहने वाली है। परन्तु आज का हमारा वेदमन्त्र यह कहता है कि मृत्यं ब्रह्मणा मानो यह प्रेरणा आ रही है कि मृत्यु के ऊपर कुछ विचार विनिमय दिया जाए। मेरे प्यारे! यह कहाँ से प्रेरणा आ रही है। यह मेरे प्यारे महानन्द जी मुझे सदैव प्रेरित करते रहते है। उसी प्रेरणा के आधार पर विचार आता रहता है कि मानव को मृत्युञ्जय बनना चाहिए।

    हमारे यहाँ देखो, वह रुद्र याग भी होता है, रुद्र कहते है, जो रुलाने वाला है। रुद्र हमारे यहाँ परमात्मा को भी कहते है, रुद्र नाम प्राणों का भी है। मेरे प्यारे! देखो, यह जो रुद्र है जब यह इस शरीर से निकल जाते है, तो अङ्ग संग रहने वाले मानो व्याकुल होते है। देखो, वह अपने में अप्रतम देखो, रुद्र कहलाते हैं। वह रूलाने वाले है, तो इसी प्रकार हमें उन प्राणों को विजय करना है। जो प्राण और अपान में अपान व्यान में, व्यान को समान में मानो देखो, एक दूसरे को जानना है, और एक दूसरे की सहायता एक दूसरे की जो सहायता होगी, उसको जानना उसके विज्ञान में रत्त रहना ही मानो देखो, यह इसको हम रुद्र याग कहते है, और रुद्र की आहुतियाँ देखो, मानो देखो, अग्निहोत्र करने वाला यज्ञमान प्रातःकालीन, सायंकालीन जब वह रुद्र याग करता है।

    मुनिवरों! देखो, मैं विशेष चर्चा देने नही आया हूं, विचार विनिमय क्या मुनिवरों! व्याख्याकार जब इस प्रकार की विवेचना करते हैं, तो वेदमन्त्र बेटा! साक्षी होता है और इस विद्या को अपने में धारयामि बनाते हैं, तो परमात्मा का जो ज्ञान है और विज्ञान है वह इतना अनन्तमयी है इतना महान है, जब माता अपने प्राण, अपान के ऊपर संयमी बन जाती है, तो उसका समन्वय होता है। वह उसको यम से, मृत्यु से पार करा देती है। मुझे स्मरण आता रहता है, मैं इन वाक्यों के ऊपर प्रायः चिन्तन भी करता रहता हूं। यम कहते हैं वायु को यम मृत्यु को भी कहते हैं और यम प्राणो को भी कहा जाता है। परन्तु रुद्र में जो रुलाने वाला प्राण चला जाता है, तो वह रुलाने वाला है। हमारे यहां परमात्मा का नामोकरण जहां रुद्र है यम है, वहीं अवृतियों में रहने वाला जो जगत है तो विचार आता रहता है यमराज शरीरं आत्मा भूतं ब्रह्मे जब यमराज अपने में मृत्यु बन करके आता है, तो मृत्युञ्जय ब्रव्हे तो मृत्युञ्जय बनने वाला यमराज से संग्राम करता है, वेदमन्त्र कहता है यहां देवस्तम् ब्रहे तन्मं ब्रहे वेदमन्त्र कहता है यमराज ही तो संघर्ष कर रहा है और जो मेरी प्यारी माताएं अथवा पुत्रियां ये बाल्य काल से लेकर जब तपस्या में परणित होती है, अपने प्राण यमराज को जानने लगती हैं, तो इसके समीप कोई दुखद नही आता। 

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