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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 59 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 59/ मन्त्र 12
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - रुद्रः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    त्र्य॑म्बकं यजामहे सु॒गन्धिं॑ पुष्टि॒वर्ध॑नम्। उ॒र्वा॒रु॒कमि॑व॒ बन्ध॑नान्मृ॒त्योर्मु॑क्षीय॒ मामृता॑त् ॥१२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्र्य॑म्बकम् । य॒जा॒म॒हे॒ । सु॒गन्धि॑म् । पु॒ष्टि॒ऽवर्ध॑नम् । उ॒र्वा॒रु॒कम्ऽइ॑व । बन्ध॑नात् । मृ॒त्योः । मु॒क्षी॒य॒ । मा । अ॒मृता॑त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥१२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्र्यम्बकम्। यजामहे। सुगन्धिम्। पुष्टिऽवर्धनम्। उर्वारुकम्ऽइव। बन्धनात्। मृत्योः। मुक्षीय। मा। अमृतात् ॥१२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 59; मन्त्र » 12
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 30; मन्त्र » 6

    व्याख्याः शृङ्गी ऋषि कृष्ण दत्त जी महाराज -

    व्याख्याः शृङ्गी ऋषि कृष्ण दत्त जी महाराज-यज्ञ में सुगन्धि और पुष्टिवर्धनम् सामग्री

    मेरे प्यारे! देखो, वह वेदों की आभा को ले करके मानो देखो, सुगन्ध के ऊपर विचार विनिमय करने लगे जब वह सुगन्ध के ऊपर क्या यह सुगन्ध मानव को कहाँ ले जाती है एक ब्रह्मचारी मानो बाल्यकाल में वेदों का अध्ययन कर रहा है अथवा वह अपनी शिक्षा में पूर्णता को प्राप्त होने जा रहा है मानो उनके विचारों में एक सुगन्धि उत्पन्न हो गई है। क्या मैं अध्ययनशील हूं मानो मैं परमपिता परमात्मा के द्वार पर जाना चाहता हूं मेरे प्यारे! वह विद्यार्थी अपने में मानो देखो, महान सुगन्धित हो करके तो मुनिवरों! देखो, वह अपने में पार हो जाता है विचार क्या मेरे प्यारे! यहां तीन प्रकार के साकल्यों की चर्चा प्रायः हमारे यहां होती रही है सबसे प्रथम सुगन्धियुक्त पदार्थ जो मानव को सुगन्धित बना देता है मेरे यज्ञमान को सुगन्धित बना देता है।

    जो रोगनाशक हों रोगनाशक मुनिवरों! देखो, नाना प्रकार के रुग्ण होते हैं नाना प्रकार कर रुग्णों में मानो देखो, यही तो औषध अपने में क्रियाकलाप करती रहती है आज मैं बेटा! तुम्हे यह उच्चारण करने आया हूं कि हे यज्ञमान! जब तू याग करने के लिए तत्पर हो तो मानो रोगनाशक औषधियों को एकत्रित कर और उन औषधियों के द्वारा तू याग कर महाराजा अश्वपति प्रातःकालीन नित्यप्रति याग करते थे मानो देखो, याग के भिन्न भिन्न प्रकार होते हैं मानो उन यागों में वह पञ्च कोणों में याग नित्यप्रति किया करते थे मानो सप्त कोणों में भी प्रायः याग होते रहे हैं तो महाराजा अश्वपित उनकी पत्नी नित्यप्रति याग करते थे उस याग का परिणाम यह हुआ क्या उनके प्रत्येक राष्ट्र में प्रत्येक मानव मानो यागिक बनने के लिए तत्पर हो गया मुनिवरों! देखो, एक समय महाराजा अश्वपति की जो धर्मदेवी थी उनको मानो रुग्ण हुआ तो वह याग करने लगे तो याग करते करते उन्होंने मानो दुक  दुकी का एक औषध को ले करके उन्होंने पीपल के पञ्चाङ्ग को बना करके मानो देखो, उसका अमृत रुप बना करके और वह कामधेनु गऊ के घृत के द्वारा वह जब याग करने लगे तो मानो देखो, उनका रुग्ण समाप्त हो गया।

    विचार विनिमय क्या मैं उच्चारण कर रहा था की याग में तीन प्रकार के साकल्य होते हैं एक साकल्य होता है पुष्टिकारक मानो देखो, जो मानव पौष्टिक बनना चाहता है मुनिवरों! देखो, पौष्टिक बनने के लिए जैसे हमारे यहां पुत्रेष्टि याग होते हैं पुत्रेष्टि याग में वह साकल्य एकत्रित किए जाते हैं जिनके याग करने से मानो देखो, याग की तरंगें उनकी नासिका के द्वारा अन्तर्हृदय में जब प्रवेश करती हैं तो वह इन परमाणुओं का जन्म हो जाता है जिनसे मानो देखो, पुत्र इत्यादियों की उत्पति का एक मूल बनता है मानो देखो, उन औषधियों को एकत्रित करके हमारे यहां मुझे स्मरण है मुनिवरों! देखो, जब राजा दशरथ के यहां पुत्रेष्टि याग का विधान किया गया या इसके पूर्व वंशलज में चले जाओ महाराजा दिलीप ने मानो कामधेनु दुग्ध का आहार कराया और आहार करके वह उन साकल्यों को ले करके प्रातःकालीन याग करते थे याग करने के पश्चात देखो, गो घृत के द्वारा गो दुग्ध के द्वारा भी याग किया जाता है मानो देखो, वह वह अग्नि इतनी प्रचण्ड होनी चाहिए जिससे दुग्ध की आहुति को वह मानो देखो, अपने में निगल जाए अपने में निगल जाए घृत भी उसमें प्रवेश हो जाए तो मानो देखो, वह साकल्य सम्भेतु कहलाता है।

    तो अन्तरिक्ष में बेटा! देखो, मानो वह जो चिकने पदार्थों की जो घृत है वह मानो देखो, घृत के रुप में अन्तरिक्ष में छा जाता है और वह अन्तरिक्ष में वह तरल परमाणुओं को मानो देखो, जीवन सत्ता प्रदान करके उन्हे जीवित बनाता है नाशदायक प्रा में मानो देखो, उनका हृास होता रहता है तो परिणाम क्या मेरे पुत्रों देखो, मुझे कई समय हो गया यागों के सम्बन्ध में अपने उद्गीत गाते हुए मेरे प्यारे! महानन्द जी मुझे प्रेरित करते रहते हैं परन्तु मैं इस सम्बन्ध में कोई विशेष वाक नही प्रगट कर सका हूं विचार विनिमय क्या है मुनिवरों! देखो, वह जो पौष्टिक पदार्थ है उसे पान करना है पौष्टिक पदार्थ के द्वारा याग करना है उसमें मुनिवरों! देखो, जितने भी मानो अन्न हैं उन अन्नों को एकत्रित करके जिसमें मानो देखो, चिकने पदार्थों की उपलब्धियां होती हो ऐसे अन्नों को एकत्रित किया जाता है और एकत्रित करके उन अन्नों के द्वारा मानो देखो, उनका खरल बनाया जाता है वह अग्नि में मानो देखो, साकल्य के रुप में परिणित किया जाता है मानो देखो, वह मानव पौष्टिक बनता रहता है छह माह तक याग करने से शुद्ध आहार करने से मानव का जीवन मुनिवरों! देखो, पौष्टिक बन जाता है वह बलिष्ठ हो जाता है मेरे प्यारे! देखो, वह गज के द्वारा भी अपना संग्राम करने के लिए तत्पर हो जाता है।

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