ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 15/ मन्त्र 2
इ॒दं पि॒तृभ्यो॒ नमो॑ अस्त्व॒द्य ये पूर्वा॑सो॒ य उप॑रास ई॒युः । ये पार्थि॑वे॒ रज॒स्या निष॑त्ता॒ ये वा॑ नू॒नं सु॑वृ॒जना॑सु वि॒क्षु ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । पि॒तृऽभ्यः॑ । नमः॑ । अ॒स्तु॒ । अ॒द्य । ये । पूर्वा॑सः । ये । उप॑रासः । ई॒युः । ये । पार्थि॑वे । रज॑सि । आ । निऽस॑त्ताः । ये । वा॒ । नू॒नम् । सु॒ऽवृ॒जना॑सु । वि॒क्षु ॥
स्वर रहित मन्त्र
इदं पितृभ्यो नमो अस्त्वद्य ये पूर्वासो य उपरास ईयुः । ये पार्थिवे रजस्या निषत्ता ये वा नूनं सुवृजनासु विक्षु ॥
स्वर रहित पद पाठइदम् । पितृऽभ्यः । नमः । अस्तु । अद्य । ये । पूर्वासः । ये । उपरासः । ईयुः । ये । पार्थिवे । रजसि । आ । निऽसत्ताः । ये । वा । नूनम् । सुऽवृजनासु । विक्षु ॥ १०.१५.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 15; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
विषय - पितरों के लिये नमस्कार
पदार्थ -
[१] (अद्य) = आज (पितृभ्यः इदं नमः अस्तु) = पितरों के लिये यह नमस्कार हो। (ये) = जो पितर (पूर्वासः) = अपना पूरण करनेवाले हैं (ये उ) = और जो (परासः) = उत्कृष्ट जीवन वाले हैं। अथवा जो हमारे जीवनों में (द्यूर्वासः) = पहले (ईयुः) = आते हैं (ये उ परास:) = और जो हमारे जीवनों के पिछले भागों में आते हैं। अर्थात् माता, पिता, आचार्य व अतिथि इन सबके लिये हम नमस्कार करते हैं। [२] उन पितरों के लिये हम नमस्कार करते हैं (ये) = जो कि (पार्थिवे रजसि) = इस पार्थिवलोक में (आनिषता:) = सर्वथा उपविष्ट हैं अर्थात् इस शरीर पर जिनका पूर्ण प्रभुत्व है। [३] (ये वा) = और जो (नूनम्) = निश्चय से (सुवृजनासु) = उत्तमता से, पूर्णरूप से पाप का वर्जन करनेवाली प्रजाओं में हैं, जिनकी गिनती निष्पाप धार्मिक लोगों में होती है।
भावार्थ - भावार्थ - शरीर पर पूर्ण प्रभुत्व वाले निष्पाप पितरों के लिये हमारा नमस्कार हो ।
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