ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 31/ मन्त्र 5
इ॒यं सा भू॑या उ॒षसा॑मिव॒ क्षा यद्ध॑ क्षु॒मन्त॒: शव॑सा स॒माय॑न् । अ॒स्य स्तु॒तिं ज॑रि॒तुर्भिक्ष॑माणा॒ आ न॑: श॒ग्मास॒ उप॑ यन्तु॒ वाजा॑: ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒यम् । सा । भू॒याः॒ । उ॒षसा॑म्ऽइव । क्षाः । यत् । ह॒ । क्षु॒ऽमन्तः॑ । शव॑सा । स॒म्ऽआय॑न् । अ॒स्य । स्तु॒तिम् । ज॒रि॒तुः । भिक्ष॑माणाः । आ । नः॒ । श॒ग्मासः॑ । उप॑ । य॒न्तु॒ । वाजाः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इयं सा भूया उषसामिव क्षा यद्ध क्षुमन्त: शवसा समायन् । अस्य स्तुतिं जरितुर्भिक्षमाणा आ न: शग्मास उप यन्तु वाजा: ॥
स्वर रहित पद पाठइयम् । सा । भूयाः । उषसाम्ऽइव । क्षाः । यत् । ह । क्षुऽमन्तः । शवसा । सम्ऽआयन् । अस्य । स्तुतिम् । जरितुः । भिक्षमाणाः । आ । नः । शग्मासः । उप । यन्तु । वाजाः ॥ १०.३१.५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 31; मन्त्र » 5
अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
विषय - शान्तिकर शक्तियाँ
पदार्थ -
[१] (यद् ह) = जब निश्चय से (क्षुमन्तः) = भूखवाले, अर्थात् जिनकी जाठराग्नि बुझ नहीं गई और जाठराग्नि के ठीक होने के कारण ही (शवसा) = बल व शक्ति के साथ (समायन्) = गतिवाले होते हैं, तब (इयं सा क्षा) = यह वह प्रसिद्ध पृथिवी (उषसां इव) = उषःकालों की तरह (भूयाः) = हो, अर्थात् जिस प्रकार उषः काल के द्वारा अन्धकार का नाश होकर उत्तरोत्तर प्रकाश की वृद्धि होती चलती है, उसी प्रकार हमारे जीवनों में उत्तरोत्तर ज्ञान का प्रकाश बढ़ता चले। इस प्रकार के जीवन को बनाने के लिये यह आवश्यक ही है कि हमारा शरीर का स्वास्थ्य ठीक हो, हम शक्ति सम्पन्न हों और गतिशील क्रियामय जीवनवाले हों। [२] (अस्य) = इस क्रियात्मक जीवन से (जरितुः) = स्तुति करनेवाले की (स्तुतिं भिक्षमाणाः) = स्तुति की प्रार्थना करते हुए, अर्थात् इस प्रकार की स्तुति को सदा कर सकने की कामनावाले (शग्मासः) = अत्यन्त सुख को करनेवाले, 'peace, plenty and power ' वाले (वाजाः) = बल व ज्ञान (नः) = हमें (उपयन्तु) = समीपता से प्राप्त हों, अर्थात् हम शान्तिकर सुखों से युक्त बलों को प्राप्त करें, परन्तु वे बल हमें प्रभु की क्रियात्मक स्तुति से सम्पन्न करनेवाले हों ।
भावार्थ - भावार्थ- हमारी जाठराग्नि ठीक हो, शक्ति से युक्त होकर हम क्रियामय जीवनवाले हों । हमारे जीवन में उत्तरोत्तर प्रकाश की अभिवृद्धि हो। हमें सुखकर शक्तियों की प्राप्ति हो और हम प्रभु-स्तवन से कभी दूर न हों ।
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