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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 31 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 31/ मन्त्र 5
    ऋषिः - कवष ऐलूषः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इ॒यं सा भू॑या उ॒षसा॑मिव॒ क्षा यद्ध॑ क्षु॒मन्त॒: शव॑सा स॒माय॑न् । अ॒स्य स्तु॒तिं ज॑रि॒तुर्भिक्ष॑माणा॒ आ न॑: श॒ग्मास॒ उप॑ यन्तु॒ वाजा॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒यम् । सा । भू॒याः॒ । उ॒षसा॑म्ऽइव । क्षाः । यत् । ह॒ । क्षु॒ऽमन्तः॑ । शव॑सा । स॒म्ऽआय॑न् । अ॒स्य । स्तु॒तिम् । ज॒रि॒तुः । भिक्ष॑माणाः । आ । नः॒ । श॒ग्मासः॑ । उप॑ । य॒न्तु॒ । वाजाः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इयं सा भूया उषसामिव क्षा यद्ध क्षुमन्त: शवसा समायन् । अस्य स्तुतिं जरितुर्भिक्षमाणा आ न: शग्मास उप यन्तु वाजा: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इयम् । सा । भूयाः । उषसाम्ऽइव । क्षाः । यत् । ह । क्षुऽमन्तः । शवसा । सम्ऽआयन् । अस्य । स्तुतिम् । जरितुः । भिक्षमाणाः । आ । नः । शग्मासः । उप । यन्तु । वाजाः ॥ १०.३१.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 31; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इयं सा क्षाः-उषसाम्-इव) यह वह पृथ्वी हमारे समक्ष प्रतिदिन प्रकाशमान उषा के समान फैली रहती है (यत्-ह) जब कि (क्षुमन्तः शवसा समायन्) अन्न देनेवाले और शब्द करनेवाले मेघ वर्षणबल से पृथ्वी पर आते हैं। उसी समय (अस्य जरितुः स्तुतिं भिक्षमाणाः) इस स्तुति करनेवाले के स्तुति-परमात्मा के उपदेश को चाहनेवाले (नः शग्मासः-वाजाः-उप-आ-यन्तु) कल्याणकारी ज्ञानवान् जन हमारे पास आते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    परमात्मा की रचित पृथ्वी हमें सदा आधार देनेवाली उषा के समान सहायक है। मेघ अन्न उत्पत्ति के निमित बरसते हैं और परमात्मा के उपदेशवाले हमें उसकी कृपा से प्राप्त होते हैं ॥५॥

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    विषय

    शान्तिकर शक्तियाँ

    पदार्थ

    [१] (यद् ह) = जब निश्चय से (क्षुमन्तः) = भूखवाले, अर्थात् जिनकी जाठराग्नि बुझ नहीं गई और जाठराग्नि के ठीक होने के कारण ही (शवसा) = बल व शक्ति के साथ (समायन्) = गतिवाले होते हैं, तब (इयं सा क्षा) = यह वह प्रसिद्ध पृथिवी (उषसां इव) = उषःकालों की तरह (भूयाः) = हो, अर्थात् जिस प्रकार उषः काल के द्वारा अन्धकार का नाश होकर उत्तरोत्तर प्रकाश की वृद्धि होती चलती है, उसी प्रकार हमारे जीवनों में उत्तरोत्तर ज्ञान का प्रकाश बढ़ता चले। इस प्रकार के जीवन को बनाने के लिये यह आवश्यक ही है कि हमारा शरीर का स्वास्थ्य ठीक हो, हम शक्ति सम्पन्न हों और गतिशील क्रियामय जीवनवाले हों। [२] (अस्य) = इस क्रियात्मक जीवन से (जरितुः) = स्तुति करनेवाले की (स्तुतिं भिक्षमाणाः) = स्तुति की प्रार्थना करते हुए, अर्थात् इस प्रकार की स्तुति को सदा कर सकने की कामनावाले (शग्मासः) = अत्यन्त सुख को करनेवाले, 'peace, plenty and power ' वाले (वाजाः) = बल व ज्ञान (नः) = हमें (उपयन्तु) = समीपता से प्राप्त हों, अर्थात् हम शान्तिकर सुखों से युक्त बलों को प्राप्त करें, परन्तु वे बल हमें प्रभु की क्रियात्मक स्तुति से सम्पन्न करनेवाले हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमारी जाठराग्नि ठीक हो, शक्ति से युक्त होकर हम क्रियामय जीवनवाले हों । हमारे जीवन में उत्तरोत्तर प्रकाश की अभिवृद्धि हो। हमें सुखकर शक्तियों की प्राप्ति हो और हम प्रभु-स्तवन से कभी दूर न हों ।

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    विषय

    सब ज्ञान वालों से ज्ञान प्राप्त करना।

    भावार्थ

    (यत् ह) और जब (क्षुमन्तः) उत्तम उपदेश योग्य ज्ञान वाले, विद्वान् जन (शवसा) ज्ञान बल से युक्त होकर (सम् आयन्) संगत हों, प्राप्त हों, तब (उषसां क्षाः इव) प्रभात वेलाओं के आने पर जिस प्रकार भूमि प्रकट होती है और उनके सन्मुख होती है उसी प्रकार उन ज्ञान वालों के अभिमुख (इयं क्षाः भूयाः) यह भूमि-वासिनी प्रजा भी उनके समक्ष ज्ञान प्राप्त करने के लिये हो। और (अस्य जरितुः) इस अज्ञाननाशक उपदेष्टा के (स्तुतिं) उत्तम उपदेश को (भिक्षमाणाः) चाहते रहें और (शग्मासः) सुखप्रद (वाजाः) बल, अन्नादि ऐश्वर्य (नः आ उप यन्तु) हमें प्राप्त हों। इति सप्तविंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कवष ऐलूष ऋषिः॥ विश्वे देवा देवताः॥ छन्द:-१, ८ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ४,५, ७, ११ त्रिष्टुप्। ३, १० विराट् त्रिष्टुप्। ६ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ६ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इयं सा क्षाः उषसाम्-इव) इयं सा पृथिवी प्रतिदिनं प्राप्ताया उषसः प्रकाशमानायाः समाना विकसिता भवति (यत्-ह) यदा खलु (क्षुमन्तः शवसा समायन्) अन्नवन्तः शब्दवन्तश्च मेघा “क्षु-अन्ननाम” [निघ०२।७] “क्षु शब्दे” [अदादि०] क्विपि तुगभावश्छान्दसः, बलेन पूर्णवर्षणेन समागच्छन्ति, तदेवं (अस्य जरितुः स्तुतिं भिक्षमाणाः) अस्य स्तुतिकर्त्तुः स्तुतिं परमात्मोपदेशं याचमानाः (नः शग्मासः-वाजः उप आ यन्तु) अस्माकं कल्याणकराः-ज्ञानवन्तो जनाः-उपागच्छन्ति लडर्थे लोट् ॥५॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    When clouds laden with power and plenty of rain, and sages with words of enlightenment and power come and bless the earth, then this world of humanity, like the light and freshness of the dawns, shines and prospers on earth, and seekers of wisdom and power asking the sages for knowledge and wisdom of divinity and power and advancement on earth flock here to us, and we pray may power and prosperity continue to flow in for us and our children.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याने निर्माण केलेली पृथ्वी आम्हाला आधार देणाऱ्या उषेप्रमाणे सहायक आहे. अन्न उत्पन्न करण्यासाठी मेघ बरसतात व परमात्म्याचा उपदेश करणारे आम्हाला त्याच्या कृपेने प्राप्त होतात. ॥५॥

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