ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 44/ मन्त्र 7
ए॒वैवापा॒गप॑रे सन्तु दू॒ढ्योऽश्वा॒ येषां॑ दु॒र्युज॑ आयुयु॒ज्रे । इ॒त्था ये प्रागुप॑रे॒ सन्ति॑ दा॒वने॑ पु॒रूणि॒ यत्र॑ व॒युना॑नि॒ भोज॑ना ॥
स्वर सहित पद पाठए॒व । ए॒व । अपा॑क् । अप॑रे । स॒न्तु॒ । दुः॒ऽध्यः॑ । अश्वाः॑ । येषा॑म् । दुः॒ऽयुजः॑ । आ॒ऽयु॒यु॒ज्रे । इ॒त्था । ये । प्राक् । उप॑रे । सन्ति॑ । दा॒वने॑ । पु॒रूणि॑ । यत्र॑ । व॒युना॑नि । भोज॑ना ॥
स्वर रहित मन्त्र
एवैवापागपरे सन्तु दूढ्योऽश्वा येषां दुर्युज आयुयुज्रे । इत्था ये प्रागुपरे सन्ति दावने पुरूणि यत्र वयुनानि भोजना ॥
स्वर रहित पद पाठएव । एव । अपाक् । अपरे । सन्तु । दुःऽध्यः । अश्वाः । येषाम् । दुःऽयुजः । आऽयुयुज्रे । इत्था । ये । प्राक् । उपरे । सन्ति । दावने । पुरूणि । यत्र । वयुनानि । भोजना ॥ १०.४४.७
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 44; मन्त्र » 7
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
विषय - प्राग् नकि प्रपाग्
पदार्थ -
[१] (येषाम्) = जिन यज्ञ न करनेवालों के (दुर्युज:) = दुष्ट योजनावाले, अर्थात् अशुभ मार्ग की ओर जानेवाले (अश्वाः) = इन्द्रियरूप अश्व (आयुयुज्रे) = इस शरीर रथ में जुतते हैं वे (दूढ्यः) = [दुर्धियः ] दुष्ट बुद्धिवाले पुरुष (अपरे) = इस अपरा प्रकृति में फँसे हुए पुरुष (एवा) = अपनी गतियों [= क्रियाओं] के कारण ही (अपाग्) = अधोगतिवाले [अप अञ्च् ] (सन्तु) = हों । भोग प्रवण मनोवृत्तिवाले पुरुष ही बुद्धियाँ सदा कुकामनाएँ करती हैं, 'अन्यायेन अर्थसंचयः' का विचार करती रहती हैं। इनकी अन्ततः अवनति ही होती है । [२] (उ) = और जो (परे) = दूसरे, परा प्रकृति [आत्मस्वरूप] की ओर चलनेवाले होते हैं और (इत्था) = सचमुच दावने सन्ति देने के कार्य में ही लगे रहते हैं, (प्राग् सन्ति) = [प्र अञ्च्] आगे बढ़नेवाले होते हैं। वे वहाँ पहुँचते हैं (यत्र) = जहाँ कि पुरूणि पालन व पूरण करनेवाले अथवा पर्याप्त वयुनानि ज्ञानयुक्त व कान्त [= चमकते हुए] (भोजना) = [ पालन करनेवाले] धन हैं। इन भोगवृत्ति से ऊपर उठे हुए यज्ञशील पुरुषों पालन के लिये आवश्यक सब धन प्राप्त होते हैं, ये धन उन्हें मूढ बनानेवाले नहीं होते, प्रत्युत उनके ज्ञान को बढ़ाते हुए उन्हें आगे ले चलते हैं ।
भावार्थ - भावार्थ - भोग-प्रवण बनकर हम अधोगति को प्राप्त करनेवाले न बनें। यज्ञों में प्रवृत्त हुए-हुए आगे बढ़ें और ज्ञानयुक्त धनोंवाले हों ।
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